में इस मंज़िल पर




जीवन के पथ पर अनगिनती मंज़िल मिलती यायावर को
में इस मंज़िल पर आकर हूँ एक नई मन्ज़िल  तलाशता

मोड़ मोड़ पर मिली मन्ज़िलें स्वागत में बाँहें फ़ैलाये
आमंत्रण देती, सन्ध्या का नीड़ वहीं अंतिम बन जाये
पथ की बाधाओ को सहकर जो परिणाम अपेक्षित पाया
कर संतोष उसी में, यात्रा वहीं पूर्ण तय कर दी जाये

 पर मन का उतावलापन तो ​नये क्षितिज की खिड़की खोले
​ दूर नजर की सीमाओं  से रहे ध्येय को फिर पुकारता


संचय की प्रवृत्ति तो जीवन का प्राकृतिक ही स्वभाव है
पूर्ण पूर्णता पा लेने पर भी लगता कुछ तो अभाव है
इस मन्ज़िल पर आकर ऐसी ही अनुभूति जगी है मन में
यह मन्ज़िल है बस मरीचिका, दूर अभी मेरा पड़ाव है

रिक्त हो गई गठरी की  में खोल तहे सीधी कर लेता
और भोर में पाथेयों की निधियां फिर नूतन निखारता ​


मन्ज़िल की परिभाषाये टी हर मंज़िल पर आकर बदलीं  
नई भोर के साथ डगर के अम्बर पर छाई नव बदली
झंझाओ से पथचिह्नों को मील सदा आयाम नए ही
कदम कदम पर संकल्पो को देख देख बाधाएं सम्भली

इस मंज़िल पर, मंज़िल ही अब दिखा रही है दूजी मंज़िल
मैं नव मंज़िल का नूतन पथ मानचित्र में हूँ संवारता 

No comments:

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...