आते जाते झोंको से
करती है दुआ सलाम
आस टंकी द्वारे पर पूछे
रह रह बस इक नाम्
स्वप्न सजा नयनो का आगन
पहने बस सन्नाटा
उजड़ी हुई राह पर कोई
कदम नही रख पाता
लौटी है हर बार मोड़ से
ही कजरारी शाम
बाट जोहते हरकारे की
दृष्टि हुई धुंधली
एक चित्र पर रही अटक कर
आंखों की पुतली
कान लगे मुंडेरी पर आ
कौआ बोले कांव
टंके चित्र कमरे में, बीते
कितने बरस बुहार
धूमिल हुई प्रतीक्षा के
रंगों में धूल दीवार
गुमसुम रहती चौबारे मे
खड़े नीम
की
छांव
एक बरस के बाद आज फिर
आया मां का दिन
किसे बताये कैसे काटे
गिन गिन कर पल छिन
पीर हिया की हरे तनिक भी
मिली नहीं वो बाम
1 comment:
मातृ दिवस की शुभकामनायें
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