तुमने मुझे पंख सौंपे है और कहा विस्तृत वितान है
पंख पसारे मैं आतुर हूँ बस उड़ान में विघ्न न डालो
पुरबाई जब सहलाती है पंखों की फड़फड़ाहटों को
नई चेतना उस पल आकर सहज प्राण में है भर जाती
आतुर होने लगता है मन,नव उड़ान लेने को नभ में
सूरज को बन एक चुनौती पर फैलाता है स्म्पाती
मैं तत्पर हूँ फैला अपने डैने नापूँ सभी दिशाएँ
अगर खिंची लक्ष्मण रेखाएं एक बार
तुम तनिक मिटा लो
नन्ही गौरेया की क्षमता कब उकाब से कम है होती
संकल्पों की ही उड़ान तो नापा करती है वितान को
उपक्रम ही तो अनुपातित है परिणामों की संगतियों से
लघुता प्रभुताएं केवल बस इनसे ही तो नापी जाती
एक किरण नन्हे दीपक की, तम को ललकारा करती है
और मिटा देती है उसको, डाले पहरे अगर उठा लो
साक्षी हो तुम अनुमोदन जब मिल जाता है विश्वासों को
कुछ भी प्राप्ति असंभव तब तब शेष नहीं रहती जीवन में
मनसा वाचा और कर्मणा सत्य परक सहमति पा कर के
एक बीज से विस्तृत बेलें छा जाती पूरे उपवन में
एक अकेली चिंगारी भी दावानल बन जाया करती
फ़न फैलाये अवरोधों को अगर मार्ग से तनिक हटा लो
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