चुन सभी अवशेष दिन के
अलगनी पर टांक के
स्वप्न मांगे है नयन ने
चंद घिरती रात से
धुप दोपहरी चुरा कर ले गई थी साथ में
सांझ
थी
प्यासी रही
ले
छागला
को
हाथ में
भोर ने दी रिक्त झोली
ही
सजा पाथेय की
मिल न पाया अर्थ कोई भी सफर
की
बात में
चाल हम चलते रहे
ले साथ पासे मात के
आंजुरी में स्वाद वाली बूँद न आकर गिरी
बादलो के गाँव से ना आस कोई भी झरी
बूटियों ने रंग सारे मेंहदियों के पी लिए
रह गई जैसे ठिठक कर हाथ की घड़ियाँ डरी
ओर दिन को तकलियो पर
रह गए हम कातते
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सुन्दर
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