अब नहीं स्वीकार यह संवेदनाएं यह दिलासे
मैं गया हूँ सीखः अपनी पीर पी कर मुस्कुराना
मैं गया हूँ सीखः अपनी पीर पी कर मुस्कुराना
आंजुरि फैलाये याचक कल तलक तो था अपेक्षित
और हर इक द्वार से पाई उपेक्षाएं निरंतर
राह ने करते तिरस्कृत मार्ग में बाधाएं बोई
थे रहे आभास मंज़िल के कही पर दूर छिप कर
और हर इक द्वार से पाई उपेक्षाएं निरंतर
राह ने करते तिरस्कृत मार्ग में बाधाएं बोई
थे रहे आभास मंज़िल के कही पर दूर छिप कर
अब नहीं स्वीकार यह निष्ठाएं मुझको एकलवयी
मैं गया हूँ सीख धनु पर आप ही अब शर चढ़ाना
मैं गया हूँ सीख धनु पर आप ही अब शर चढ़ाना
प्राप्ति के फल फुनगियों के छोर पर टिककर रहे थे
और बंध कर मुट्ठियों में रह गई थी उँगलियाँ भी
दोपहर का सूर्य तपता लक्ष्य को धुंधला किये था
हो न पाई थी सहायक। एक पल को बदलियां भी
और बंध कर मुट्ठियों में रह गई थी उँगलियाँ भी
दोपहर का सूर्य तपता लक्ष्य को धुंधला किये था
हो न पाई थी सहायक। एक पल को बदलियां भी
अब नहीं स्वीकार यह अनुदान फल का शाख पर से
आ गया मुझको निशाना अब गुलेलों से लगाना
आ गया मुझको निशाना अब गुलेलों से लगाना
ज़िन्दगी देती नहीं अनुनय विनय से कुछ अपेक्षित
बात यह इतिहास ने हर बार दुहरा कर बताई
सिंधु से पथ का निवेदन, पंचग्रामी भाग केवल
प्रीत न होती बिना भय, कह गए तुलसी गुंसाई
बात यह इतिहास ने हर बार दुहरा कर बताई
सिंधु से पथ का निवेदन, पंचग्रामी भाग केवल
प्रीत न होती बिना भय, कह गए तुलसी गुंसाई
अब नहीं स्वीकार यह इतिहास का पुनरावलोकन
आ गया है चिह्न मुझको अब समय सिल पर लगाना
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