जोवन के इस रंगमंच पर हम थे रहे व्यस्त अभिनय में
कोई डोरी थाम पार्श्व से रहा खींचता रह रह परदे
यद्यपि बतलाई हमको थी गई भूमिका विस्तारों में
और रटाये गए वाक्य वे, जो सब हमको दुहराने थे
एक एक पग नपा तुला था बँधा मंच की सीमाओं में
और भंगिमायें व्याख्यित थीं जिनमें शब्द रंगे जाने थे
रहा खेलता सूत्रधार पर लिए हाथ में अपने पासे
उसकी मर्जी जिस मोहरे को जैसे चाहा वैसे धर दे
देता था संकेत हमें कोई नेपथ्य खडा तो होकर
रहा निगलता बढ़ता हुआ शोर लेकिन सारी आवाजें
द्रश्य दीर्घा से ओझल हो रहे मंच के तले पंक्ति में
रही मौन की सरगम बजती सजे हुए सारे साजों में
अंक बदलते रहे किन्तु हम परिवर्तन को समझ न पाए
रहे ताकते निर्देशक कोई फिर आकर नूतन स्वर दे
प्रक्षेपण से जहां हुआ तय ज्योतिकिरण होना संकेंद्रित
वहां परावर्तन करने को प्रिज्मों ने आकार ले लिया
बिखरी हुई पटकथाओं के मध्य एक गति दे देने का
निर्देशक ने नूतन निर्णय बिना किसी को कहे ले लिया
आतुर होकर रहे ताकते, फिर से जो अभिनीत हो सके
ऐसा कोई नया कथानक फिर लाकर हाथों में धर दे
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