ये सर्दी के दिन
वस्त्र विहीना शाख पेड़ की थरथर थरथर कांपे
कजरारी इक सड़क दूधिया चादर से तन ढांपे
अड़ियल घोड़े से गाड़ी के पहिये बढे न आगे
पंथ करा साष्टांग दण्डवत दूरी अपनी नापे
पूरा दिवस बीतता गिनाते लम्हे और पल छिन
ये सर्दी के दिन
गर्म चाय की प्याली कोई आ होंठो को छू ले
मन सामीप्य अलावों वाला इक पल भी न भूले
पश्मीने की शाल बांध कर रख ले भुजपाशों में
बनें रजाई श्वेत रूई के उड़ते हुए बगूले
पता नहीं कब तक मांगेगा मौसम हमसे ऋण
ये सर्दी के दिन
थर्मामीटर के तलघर में जाकर बैठा पारा
बीस अंश फहराहाइत से लड़ बेचारा हारा
वातायन के परे गूंजती झंझाओं की पायल
लाल भभूका है गुस्से से हीटर भी बेचारा
बाहर हवा चूमती मुख को बन कर तीखी पिन
ये सर्दी के दिन
1 comment:
Sateek Chitran - aaz kal vakai bahut thand pad rahi hai ..
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