कोयल ने सरगम के सुर से गुण्जित की जब जब अमराई
हरी दूब पर पड़ी बूँद से होते प्रतिबिम्बित रंगों ने
जब जब दीवारों पर जड़ दी कोई धुंधली सी परछाईं
मुझको याद तुम्हारी आई
जब पनघट को पैंजनियों ने मद्दम स्वर में गीत सुनाये
जब जब छुई हिनाई आभा ने पूजा की सज्जित थाली
अनायास ही बेमौसम के बादल जब नभ पर घिर आये
मुझको याद तुम्हारी आई
सुमन वाटिका में वनपाखी जब भी कोई आकर चहका
दोपहरी में बेला फूला , महकी निशिगंधा सन्ध्या में
और देहरी के गमले में जब पलाश कोई भी दहका
मुझको याद तुम्हारी आई
2 comments:
जब स्मृति बलवती होती है, सारे प्रतीक बोलने लगते हैं।
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