अपने आरम्भ से आज तक यह समय नित्य रचता रहा है महाकाव्य नव
शब्द के कोश में शब्द नूतन रचे जा रहा हर निमिष और हर इक घड़ी
किन्तु असमर्थ है तेरी स्तुति कर सके या कि महिमा तेरी माँ बखाने तनिक
इक सहस्रांश भी तो सिमट न सका अनवरत अक्षरों की लगा कर झड़ी.
3 comments:
ब्लॉग बुलेटिन के माँ दिवस विशेषांक माँ संवेदना है - वन्दे-मातरम् - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सच भाव प्रकट किये हैं, शब्द कम पड़ जाते हैं।
अभिनन्दन!!
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