मातृ दिवस पर

अपने आरम्भ से आज तक यह समय नित्य रचता रहा है महाकाव्य नव
शब्द के कोश में शब्द नूतन रचे जा रहा हर निमिष और हर इक घड़ी
किन्तु असमर्थ है तेरी स्तुति कर सके या कि महिमा तेरी माँ बखाने तनिक
इक सहस्रांश भी तो सिमट न सका अनवरत अक्षरों की लगा कर झड़ी.

3 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन के माँ दिवस विशेषांक माँ संवेदना है - वन्दे-मातरम् - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

प्रवीण पाण्डेय said...

सच भाव प्रकट किये हैं, शब्द कम पड़ जाते हैं।

Udan Tashtari said...

अभिनन्दन!!

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...