अक्सर ऐसा भी होता है

अक्सर ऐसा भी होता है
 
 
घंटी बजती रहे फोन की
चादर ओढ़े हुये मौन की
कोई सन्ध्या में सोता है
जी हां ऐसा भी होता है
 
 
गंगा  के तट रहने वाला
उसकी महिमा कहने वाला
टब में ही खाता गोता है
अक्सर ऐसा भी होता है
 
 
सोने की नगरी का पटुवा
बन्द तिजोरी में कर बटुवा
शीशे के टुकड़े पोता है
जी हाँ ऐसा भी होता है
 
 
अडिग बात पर रहने वाला
 बाधाओं को सहने वाला 
झट कर लेता समझौता है 
जी हाँ ऐसा भी होता है 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा, विचित्रताओं से भरी दुनिया..

शारदा अरोरा said...

vaah ji vaah ..aisa bhi hota hai..

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