दिन के उजियारे हों चाहे , चाहे रातों के अंधियारे
प्रहर , दिवस हों सप्ताहों से जुड़ कर मिले हुए पखवारे
कोई ऐसा निमिष नहीं था जबकि साथ में उंगली पकडे
चले नहीं हों मेरे संग संग ओ स्वरूपिणे , चित्र तुम्हारे
प्रहर , दिवस हों सप्ताहों से जुड़ कर मिले हुए पखवारे
कोई ऐसा निमिष नहीं था
चले नहीं हों मेरे संग संग ओ स्वरूपिणे , चित्र तुम्हारे
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पहने हर संध्या ने मेरे गीतों के गहने
लौट रहा हो चरवाहा घर
रुके नीड़ पर आ यायावर
सबके अधरों पर आ आ कर
सहज लगे बहने
पहने हर संध्या ने मेरे गीतों के गहने
हुई प्रतीची अरुणाई में
जले दीप की अँगड़ाई में
पछुआई सी पुरबाई में
लगा धुँआ कहने
पहने हर संध्या ने मेरे गीतों के गहने
रक्त-पीत नदिय के जल में
बिखरे रजनी के काजल में
आज बीत बन जाते कल में
होते पल तहने
पहने हर संध्या ने मेरे गीतों के गहने
3 comments:
वाह, हर रंग सजा शब्दों में..
पहने हर संध्या ने मेरे गीतों के गहने
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चारों पहर आपके ही गीतों के गहने पहने ठुमकती है..बेहतरीन!!
Bahut sundar bhaav holi ki shubhkaamnayen...
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