राग बासंती सुनाने आ रही है

ढूँढतीं हों उंगलियाँ जब पथ दुपट्टे की गली में
पाँव के नख भूमि पर लिखने लगें कोई कहानी
दृष्टि रह रह कर फिसलती हो किसी इक चित्र पर से
सांस में आकर महकने लग पड़े जब रातरानी
 
तब सुनयने जान लेना उम्र की इस वाटिका में
एक कोयल राग बासंती सुनाने आ रही है

फूल खिलते सब,अचानक लग पड़ें जब मुस्कुराने
वाटिकाएं   झूम कर जब लग पड़ें कुछ गुनगुनाने
झनझनाने लग पड़ें पाजेब जब बहती हवा की
और मन को लग पड़ें घिरती घटा झूला झुलाने

उस घड़ी ये जान लेना प्रीत की सम्भाशीनी तुम
कोई रुत छू कर तुम्हें होती सुहानी जा रही है
 
देख कर छवि को तुम्हारी,लग पड़े दर्पण लजाने
झुक पड़े आकाश,छूने जागती अँगड़ाइयों को
भित्तिचित्रों में समाने लग पड़े   आकाँक्षायें
शिल्प मिलने लग पड़े जब काँपती परछाइय़ों को
 
जान लेना तब प्रिये, नव भाव की जादूगरी अब
कोई अनुभव इक नया तुमको कराने जा रही है.

4 comments:

निर्मला कपिला said...

ढूँढतीं हों उंगलियाँ जब पथ दुपट्टे की गली में---
बहुत खूबसूरत पँक्तियाँ। पूरा गीत मन मे आनन्द भर गया। बधाई आपको। सारस्वत सम्मान के लिये भी बहुत बहुत बधाई।

प्रवीण पाण्डेय said...

संकेतों से माध्यम से मधुरिम भविष्य का राग बाँचती कविता।

Akshitaa (Pakhi) said...

यह तो बहुत सुन्दर गीत है.

पाखी की दुनिया में भी आपका स्वागत है.

शिवम् मिश्रा said...


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - पैसे का प्रलोभन ठुकराना भी सबके वश की बात नहीं है - इस हमले से कैसे बचें ?? - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...