थरथराती हुई उंगलियों से फ़िसल
छांव पलकों की ओढ़े अधर चूम कर
मेज पर गिर गई इक कलम के सिरे
पर अटक रह गया अनलिखा पत्र हूँ
मन की गहराईयों से उमड़ते हुए
भाव के सिन्धु की एक भीनी लहर
पाटलों पर संवरते हुए चित्र में
रंग की संधि पर एक पल को ठहर
ओढ़ संभावना की नई सी दुहर
रात के रत्न आभूषणों से सजा
कथ्य वह जो उभरता रहा कंठ से
शब्द में जो मगर रह गया अनढला
पत्र पीपल के जिसके रहे साक्ष्य में
सांझ की झुटपुटी रोशनी में घिरे
मौन स्वर, दृष्टि की साधना में कटा
अंश में एक पल के, वही सत्र हूँ
कितने असमंजसों की भुलैय्याओं में
कितने संशय के सायों से घिरते हुए
जो हुआ स्वर्णमंडित कभी, तो कभी
रह गया बून्द बन कर बिखरते हुए
टिक गया पार पगडंडियों के कभी
व्योम से रिस रहे मेघ के तार पर
रह गया अलगनी पे लटकता हुआ
एक परछाईं सी बन के दीवार पर
जो रखी चिलचिलाती हुई धूप में
आस की टोकरी एक सहमी हुई
उसके कोमल सपन को बचाता हु
मैं शपथ के कवच का बना छत्र हूँ
जन्म जन्मान्तरों के सिरे जोड़ती
एक अनुभूति है कँपकँपाती हुई
एक अभिव्यक्ति है मौन के साज पर
धमनियों में कहीं झनझनाती हुई
आतुरा भाव हैं,गंध के,दृश्य के
श्रव्य के स्वर के इक स्पर्श के वास्ते
भावनायें हुई हैं समर्पित लिये
श्वास के फूल संचित सभी पास के
कर नियंत्रित रहा काल के चक्र को
सूत्र बुनता हुआ नित्य सम्बन्ध के
जोकि अर्चित रहा चाहना से सदा
वो अदेखा अजाना मैं नक्षत्र हूँ
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5 comments:
रचयिता पत्र जानबूझ कर पूरा नहीं कर रहा है, अपना नाम जो देना पड़ जायेगा अन्त में।
जीवन दर्शन को जीवंत बनाती अभिव्यक्ति ..... बहुत सुंदर
man ko bha gaya ji ye
थरथराती हुई उंगलियों से फ़िसल
छांव पलकों की ओढ़े अधर चूम कर
मेज पर गिर गई इक कलम के सिरे
पर अटक रह गया अनलिखा पत्र हूँ
Valentine Day flowers
अद्भुत रचना....बेजोड़ शब्द और बेहतरीन भाव दोनों मिलकर एक लाज़वाब कविता बन गई...बहुत बहुत धन्यवाद राकेश जी
गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
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