दीप जितने जले आज ये देखना
कल की परछाईयां आ इन्हें न पियें
वर्त्तिकायें हँसी हैं नयन खोलकर
एक लम्बी उमर ले बरस भर जियें
कामनायें,चमक फुलझड़ी की रहे
ला दिवस नित बताशे रखे हाथ पर
गंध की झालरी नित्य चुन बाग से
फूल टाँगे नये आपके द्वार पर
रात रजताभ हों चाँदनी से धुली
दिन पिघलते हुए स्वर्ण से भर रहे
सन्दली शाख पर जो रही झूलती
आपकी वीथि में वोही पुरबा बहे
बात इतनी पुरानी सभी ये हुईं
शब्द ने अर्थ भी अब लगा खो दिये
स्वप्न सजते हुए आँख में थक गये
आस पलती हुये शून्य में मिल गई
हर बरस साध का एक पल मिल सके
कामना बस यही एक पलती रही
पर तिमिर चक्रवर्ती,रहा राज कर
टिमटिमाती रही मुँह छिपा रोशनी
और जो इक किरन थी उठी भोर में
सांझ के साथ आंसू बहा कर गई
ये कथा बस कहानी न बन कर रहे
सत्य ने दानवों के हनन थे किये
है प्रकृति का नियम ये रहा सर्वदा
पूर्णिमा आयेगी जब अमावस ढले
रात के बीतते आ उषा की किरन
पूर्व के व्योम से नित्य मिलती गले
किन्तु दीपावली पर वही दीप हैं
वे ही अँगनाई हैं, हैं वही अल्पना
लग रहा कैद पिंजरे में हो रह गई
जो क्षितिज के परे थी उड़ी कल्पना
आज बदलें चलो रीत, नूतन करें
जितने संकल्प थे ज़िन्दगी ने किये
भावना एक अपन्त्व की बस रहे
स्वार्थ पाये नहीं स्थान कोई कहीं
प्रज्ज्वलित ज्योति दीपावली की रहे
रह न पाये कलुष तम का कोई नहीं
बात होठों से निकले जो अबके बरस
शब्द में ही सिमट कर नहीं बस रहे
जो भी निश्चय करें बस वही धार बन
एक भागीरथी की निरन्तर बहे
आओ हम तुम मनायें ये दीपावली
आज संग संग यही एक निर्णय लिये
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6 comments:
भाई जी
अद्भुत!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर
शुभ दीपावली.... दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.....
बेहतरीन गीत ...गुनगुना रहा हूँ !
दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें राकेश भाई !
आपको भी सपरिवार दिपोत्सव की शुभकामनाएँ
आओ हम तुम मनायें ये दीपावली
आज संग संग यही एक निर्णय लिये...
दीवाली के शुभ अवसर पर एक भावपूर्ण और बढ़िया रचना पढ़ने को मिली ..अभी अभी पंकज जी के ब्लॉग पर आपकी एक और रचना पढ़ कर आया हूँ...वो भी लाजवाब और ये भी लाजवाब....दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ..प्रणाम स्वीकारें
दीवाली में जले आशाओं के दीप सदा ही जलते रहें।
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