वह अधर के कोर पर अटकी हुई सी मुस्कुराहट
वह नयन में एक चंचल भाव पलकें खोलता सा
भाल का वह बिन्दु जिसमे सैकड़ों तारे समाहित
कंठ का स्वर शब्द में ला राग मधुरिम घोलता सा
कल्पनातीते ! मेरी सुधि में तुम्हारी छवि मनोहर
लेख बन कर इक शिला का हर घड़ी है साथ मेरे
स्वर्णमय हो पल हुए अंकित ह्रदय के पाटालों पर
आ गईं थी तुम मेरे भुजपाश में सहसा लजा कर
और भर ली माँग अपनी प्रीत का चन्दन मेरी ले
रंग उसमें फिर हिना का घोल कर कुमकुम बना कर
प्राणसलिले ! कोष स्मॄति के एक उस ही ज्योत्सना से
दीप बन होते प्रकाशित हर घड़ी संध्या सवेरे
वह किताबों की झिरी से कनखियों का झाँक जाना
भूलना राहें दुपट्टे की गली में उंगलियों का
खींचना रेखा धरा पर दॄष्टि की अपनी कलम से
और अधरों का निरन्तर फड़फड़ाना तितलियों सा
प्रीतिसरिते !चित्र ये मेरे ह्रदय की वीथिका में
हर घड़ी मधुसिक्तता की रश्मियाँ रहते बिखेरे
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7 comments:
वाह! बहुत सुन्दर!!
कैसा रहा भाई कैलिफोर्निया सम्मेलन?
waah adbhut sir aapki rachnaaon me jo hindi ka roop aur kavy ki dhaara dikhti hai...main uska mureed hun...dhanywaad ek aur sundar rachna padhwane ke liye
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
श्रींगार रस में डूबे शब्द और भावनाओं का अप्रतीम मिलन
बेहतरीन !!
अति सौम्य,सरस,पावन प्रणय गीत, जो मुग्ध कर गया.....
आपकी लेखनी को नमन !!!
राकेश जी,
आपकी सभी रचनाएँ अद्भुत हैं.
"अँधेरी रात का सूरज" पढ़ रहा हूँ. जादुई गीत हैं सब के सब.
-राजीव
स्वर्णमय हो पल हुए अंकित ह्रदय के पाटालों पर
आ गईं थी तुम मेरे भुजपाश में सहसा लजा कर
और भर ली माँग अपनी प्रीत का चन्दन मेरी ले
रंग उसमें फिर हिना का घोल कर कुमकुम बना कर
आपकी रचनाओं का कोई जवाब नही..सुंदर और बेहतरीन शब्दों से सजी उससे कई गुना लाज़वाब भाव..एक उम्दा रचना ..गुनगुनाते हुए पढ़ता ही चला गया...अच्छा लगा..प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
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