तुम्हारी नजरें जहाँ गिरी थीं, कपोल पर से मेरे फिसल कर
हमारी परछाईयां उस जगह में अभी तलक भी घुली हुई हैं
हुई थी रंगत बदाम वाली हवा की भीगी टहनियों की
सजा के टेसू के रंग पांखुर पर, हँस पड़ी थी खिली चमेली
महकने निशिगंध लग गई थी, पकड़ के संध्या की चूनरी को
औ बीनती थी अधर के चुम्बन कपोल पर से नरम हथेली
जनकपुरी की वह पुष्प वीथि,जहा प्रथम दृष्टि साध होकर
मिली थी, उसकी समूची राहें अभी तलक भी खुली हुई हैं
न तीर नदिया का था न सरगम, औ न ही छाया कदम्ब वाल
न टेर गूंजी थी पी कहाँ की, न सावनों ने भिगोया आकर
मगर खुले रह गये अधर की जो कोर पर था रहा थिरकता
वही सुलगता सा मौन जाने क्या क्या सुनाता है अब भी गाकर
न जाने क्यों इस अनूठे पल में, उमड़ती घिरती हैं याद आकर
मुझे पकड़ कर अतीत में ले जायेंगी इस पर तुली हुई हैं
वो मोड़ जिस पर गुजरते अपने कदम अचानक ही आ मिले थे
वो मोड़ जिस पर सँवर गई थी शपथ के जल से भरी अंजरिया
उसी पे उगने लगीं हैं सपनों की जगमगाती हजार कोंपल
लगी उमड़ने बैसाख में आ भरी सुधा की नई बदरिया
ढुलक गई नभ में ईंडुरी से जो इक कलसिया,उसी से गिर कर
जो बूँद मुझको भिगो रही हैं वो प्रीत ही में धुली हुई हैं
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7 comments:
न जाने क्यों इस अनूठे पल में, उमड़ती घिरती हैं याद आकर
मुझे पकड़ कर अतीत में ले जायेंगी इस पर तुली हुई हैं.....
वाह !! बहुत खूब ... दिल को छूने में सक्षम है आपकी सुंदर कविता के भावपूर्ण शब्द
:)Happy Birthday !
rakeshji janm din ki bahut bahut
badhai evam shubh-kaaamnayen
kavita ke bhav achchhe hain
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
राकेश जी,
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |
राकेश जी,
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई।
राकेश जी,
जन्मदिन की बधाई.
शनिवार(मई २२, २०१०) को आप हमारे यहाँ आ रहे हैं कवि सम्मलेन में. इंतज़ार है. मिलने का इच्छुक हूँ.
प्रणाम.
राजीव
आदरणीय राकेश जी, जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई !!
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