जिसे देख कर के अजन्ता बनी थी
मचलती हुई इस हवा के इरादे
मेरे हमनशीं जो अगर नेक होते
नहीं छेड़ती फिर ये ज़ुल्फ़ें तुम्हारी
न अठखेलियाँ चूनरी से ही करती
ये सोई हुई थी कहीं झाड़ियों में
किसी फूल की पंखुरी में सिमट कर
जगा कर गया एक खुशबू का झोंका
तुम्हारे पगों से चला था लिपट कर
उसे पी के बहकी हुइ आ गई ये
तुम्हारी गली ले कदम लड़खड़ाते
बजाने लगी सीटियां मद में डूबी
रही एक ही नाम को गुनगुनाते
जो डूबी न होती मदिर गंध में ये
तो आपा न अपना जरा भूल पाती
न भुजपाश में अपने तुमको पकड़ती
न हीं गाल पर आके चुम्बन ही जड़ती
किसी एक चंचल किरन ने घटा पर
जो खींची थी तस्वीर इक दिन तुम्हारी
वादियों में बनी झील के आईने में
तरंगों ने पुलकित हुए जो उभारी
था उससे छिटक छू गया एक जलकण
खनकती हुई झालरी का किनारा
तो जैसे मिली सोमरस की सुराही
उसे इसने गट गट गले से उतारा
अगर पी न होती सुधा रूप की तो
न सुधि को बिसारे गगन में विचरती
न खोती नियंत्रण स्वयं पर से अपना
न फिर फिर संभलती न फिर फिर ही गिरती
शराफ़त का यूँ तो रही ओढ़कर ये
दुशाला,चली आई जब इस डगर पर
मगर आज करने लगी है शरारत
जो तुम आ गईं सामने थी संवर कर
गई भूल प्रतिमायें जो थी निहारीं
ढलीं शिल्प में रूप के जो बनी थीं
नहीं याद आया उसे भी था देखा
जिसे देख कर के अजन्ता बनी थी
गर तुमको देखा न होता हवा ने
नहीं डगमगाती सहज राह पर से
न रहती टँगी द्वार पर आ तुम्हारे
न गलियों में रह रह के लौटा ही करती
14 comments:
बहुत-बहुत बधाई!
अरे, यह तो किसी फारसी छ्न्द की लय है।
आनन्द आ गया। वाह !
बहुत दिन बात आपको अलग मूड में पाया , बहुत अच्छा लगा भाई जी !
राकेश जी लाज़वाब रचना..भाव,शब्द और लय तीनों का बेहतरीन तालमेल.....बस गुनगुनाते ही जा रहा हूँ....और हाँ फोटू भी बढ़िया है..आपकी होली पर लिखी हुई गीत भी हमने सुबीर जी के ब्लॉग पर पढ़ी थी एक और अलग और मजेदार रचना पढ़ने को मिली था....वहाँ भी आपके कुछ चित्र थे, थोड़े विचित्र था पर ठीक थे होली के रंग में तो यही हाल होता है...
सादर प्रणाम...
शराफ़त का यूँ तो रही ओढ़कर ये
दुशाला,चली आई जब इस डगर पर
मगर आज करने लगी है शरारत
जो तुम आ गईं सामने थी संवर कर
-हर बूंद एक सागर तो ३५० बूँदों का महासागर...ऐसे ही अविरल छल छल बहता रहे और हम आनन्द में डूबे रहें..यही शुभकामनाएँ..इस मुकाम की बधाई स्वीकारें.
बहुत सुन्दर प्रस्तुती। आपको 350 बूण्दों के लिये बहुत बहुत बधाई। ये आँकडा जल्द ही हजारों मे पहुँचे। शुभकामनायें
बहुत ही उम्दा रचना लगी , भाव का बहाव शुरु से लेकर आखिर तक बना रहा, बहुत बढ़िया लगी रचना ।
350वीं बूंद नहीं .. 350वीं बार एक साथ कई बूंदें .. पाठकों के मन को तृप्त करनेवाली .. बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
Hardik Badhai swikaar kare..!!
Is sundartam rachana ke liye dhanywaad.
bahut bahut badhayee Rakesh ji.
yah kavita mein adbhut hai.
aap ki kavitayen bahut hi achchhee hoti hain.
aage bhi aise hi ishwar ki kripa bani rahe,shubhkamnayen
@correction--yeh kavita bhi adbhut lagi.
ये गीत गा के कितना क्यूट लगेगा :):)
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