यह गीत आख़िर कौन गाता

मौन सरगम की अधूरी रागिनी का हाथ थामे
ज़िंदगी के तार पर यह गीत आख़िर कौन गाता

है अजानी सी किसी अनुभूति का यह स्पर्श कोमल
गंध की बदरी उमड़ कर कर आई कोई वाटिका से
पांखुरी को छु रही हो बूँद कोई ओस की ढल
दूब में सिहरन कोई जागी हुई चंचल हवा से

जानने की कोशिशें आती नहीं हैं हाथ मेरे
शिंजिनी में देह की है कौन आकर झनझनाता

सूर्य की पहली किरण की दुधमुँही अंगड़ाई जैसा
बालपन से रह रही मन में किसी परिचित कथा सा
है उतरता दॄष्टि की अँगनाई में बन कर दुपहरी
घेर कर जिसको खड़ा है भोर से जैसे कुहासा

बढ़ रही महसूसियत की खिड़कियों पर आ खड़ा हो
कौन है आकाश पर जो चित्र कोई खींच जाता

दर्पणों पर झील के लिक्खा हवा के चुम्बनों ने
जलतरंगों ने जिसे तट की गली में आ सुनाया
धूप का सन्देश उलझा शाख की परछाईयों में
मोगरे ने मुस्कुरा जो रात रानी को बताया

एक वह सन्देश जिसने केन्द्र मुझको कर लिया है
कौन है आ परिधि पर होकर खड़ा मुझको सुनाता

6 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़ रही महसूसियत की खिड़कियों पर आ खड़ा हो
कौन है आकाश पर जो चित्र कोई खींच जाता


-अद्भुत रचना!!

ओम आर्य said...

बहुत ही सुन्दर गीत ..........बधाई ...........अतिसुन्दर

Unknown said...

adbhut !
anupam !
abhinav !
adwiteey !
_________
________waah waah waah
GEET KA SAMOOCHA SAUNDRYA AUR SHABDON KA POORNA PARAAKRAM AAPKE GEETON ME MILTA HAI

IS GEET ME BHI VAHI BAAT HAI
___BADHAAI !
RAKESHJI BADHAAI !

Satish Saxena said...

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Rakesh bhai ,geet to bahut umda hai,uttam shabd sandhan ,abhivyakti ki saarthakta sabhi kuch to hai,meri badhaiyan aur shubhkamnaye
sadar
Dr.Bhoopendra

Shardula said...

कौन गाता ?? :)

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