याद आया है मुझे वह प्रीत का पहला निमंत्रण
जो हवा ने गुनगुना कर द्वार पर मेरे पढ़ा था
स्वप्न जो अंगनाईयों में आंख की पलते रहे थे
वो लगा सहसा मुझे, साकार सब होने लगे हैं
और जो असमंजसों के पल खड़े थे, चित्र बन कर
कामना के ज्वार में घिरते हुए खोने लगे हैं
पैंजनी का सुर खनकने लग गया है आज फिर वह
कॄष्ण की जो बासुरी पर राग में ढल कर चढ़ा था
याद फिर आया अधर का थरथराना, मौन वाणी
याद वह संदेश, आये जो हवाओं के परों पर
दॄष्टि की किरणें,पिरोती अक्षरों की गूँथ माला
और मन की बात को रचती हिनाई उंगलियों पर
एक बूटा वह लगा है आज गाने गीत फिर से
पांव के नख से धरा के शाल पर जो आ कढ़ा था
दंत-क्षत पल्लू सुनाने लग गये हैं फिर कहानी
उंगलियों के चिन्ह फिर से छोर पर बनने लगे हैं
फिर किताबों में सुगन्धित हो गये हैं फूल सूखे
और गुलमोहर पुन: अब शाख से झरने लगे हैं
बात करने लग गया है एक वह रूमाल मुझसे
एक दिन जिस पर अचानक होंठ का चुम्बन जड़ा था
फिर संवरने लग गये हैं पात पीपल के सुनहरे
फिर घटाओं ने लिखा है बूँद से सन्देश कोई
फिर पखेरू बन उड़ी है कामना जीवन्त होकर
कल्पना फिर गुनगुनाने लग गई है दूध धोई
आज फिर वह भाव करने लग गया है नॄत्य मन में
जो कभी भुजपाश के पथ पर सहज आगे बढ़ा था
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9 comments:
आज फिर वह भाव करने लग गया है नॄत्य मन में
जो कभी भुजपाश के पथ पर सहज आगे बढ़ा था
वाह राकेश भाई। मजा आ गया पढ़कर। जैसा कि आप जानते हैं अपनी तुकबंदी की आदत से लाचार हूँ। तो लीजिए पेश है-
आने वाला कल सुहावन कोशिशें करते रहे हम।
हूँ दुखी जब टूटते वो स्वप्न जो मैंने गढ़ा था।।
हाँ भाई आपका फोन पर अचानक बात करना अविस्मरणीय है मेरे लिए। भारत में कबतक हैं?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
फिर किताबों में सुगन्धित हो गये हैं फूल सूखे
और गुलमोहर पुन: अब शाख से झरने लगे हैं
wah wah
फिर संवरने लग गये हैं पात पीपल के सुनहरे
फिर घटाओं ने लिखा है बूँद से सन्देश कोई
kya kahnae janab!
याद फिर आया अधर का थरथराना, मौन वाणी
याद वह संदेश, आये जो हवाओं के परों पर
aap ki nazam paRhkar aaj jane kyon aankhen nam ho gayee, koi purana manzar saamne se guzar gya.
अद्वितीय !!
शिष्ट सौम्य श्रृंगार रस की अनोखी मिसाल है यह रचना...
श्रृंगार रस की स्निग्ध धार मानस को तरल तृप्त कर जाती है.
बहुत ही सुन्दर रचना....आनंद आ गया पढ़कर....वाह !!
बहुत बढिया .. गजब की रचना।
बहुत बहुत बहुत अच्छी रचना ...पढ़कर अच्छा लगा
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
दंत-क्षत पल्लू सुनाने लग गये हैं फिर कहानी
उंगलियों के चिन्ह फिर से छोर पर बनने लगे हैं
फिर किताबों में सुगन्धित हो गये हैं फूल सूखे
और गुलमोहर पुन: अब शाख से झरने लगे हैं
बात करने लग गया है एक वह रूमाल मुझसे
एक दिन जिस पर अचानक होंठ का चुम्बन जड़ा था
--बहुत सुन्दर बहता हुआ गीत.आनन्द आ गया, बधाई.
गीतकार रमानाथ अवस्थी की याद दिला दी आप न्e. ऐसे गीत आजकल कहां दिखते हैं !
अति सुन्दर
An astoundingly beautiful song! So subtle, so delicate! Soft like birds’ feathers . . . pure like their songs ! Amazing!! Thanks for this lovely treat to eyes, ears and heart !
"आंख की अंगनाईयां, पैंजनी का सुर कॄष्ण की बासुरी पर राग में ढलता हुआ, मौन वाणी, हवाओं के परों पर दॄष्टि का संदेशों को पिरोना और मन की बात को हिना में रचना !!
कितना सौंदर्य, कितनी शिष्टता इन बिम्बों में!!
"पांव के नख से धरा के शाल पर जो आ कढ़ा था"
"दंत-क्षत पल्लू सुनाने लग गये हैं फिर कहानी
उंगलियों के चिन्ह फिर से छोर पर बनने लगे हैं
फिर किताबों में सुगन्धित हो गये हैं फूल सूखे
और गुलमोहर पुन: अब शाख से झरने लगे हैं
बात करने लग गया है एक वह रूमाल मुझसे
एक दिन जिस पर अचानक होंठ का चुम्बन जड़ा था"
"कल्पना फिर गुनगुनाने लग गई है दूध धोई"
सब कुछ अति-अति सुन्दर !!
कुछ और उचित प्रसंशा लिख सकें वह क्षमता नहीं है लेखनी में !
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