नीलकंठ का नाम हमें जब तूने दे ही दिया ज़िन्दगी
फिर क्या शेष अभीप्सित जीवन का है जो तुझको बतलायें
चाहत से यथार्थ के अंतर की दूरी पर कदम बढ़ाकर
सोचा था हम चलते जायेंगे इस पथ पर हँस कर गाकर
लेकिन तूने दिशा बोध के जो उपकरण दिये हाथों में
वे दिखलाते पग पग पर हैं बने हुए शत शत रत्नाकर
नाविक कहकर तूने हमको दे तो दी पतवार हाथ में
लेकिन साथ साथ सौंपी हैं लहर लहर भीषण झंझायें
अभिलाषाओं के दीपक में बटी हुई सपनों की बाती
महज कल्पना के तेलों से संभव नहीं तनिक जल पाती
तीली की हर लौ पर तूने लगा दिये सीलन के पहरे
और कह दिया हमें, हमारी संस्कॄतियों की है यह थाती
जितने भी मोहरे बिसात पर रखे हुए हैं, हैं अभिमंत्रित
उनके बस में कहाँ स्वयं ही चालें निर्धारित कर पायें
बाधाओं के समाधान की उत्सुकता भर कर बाहोँ में
उगते हुए दिवस, रजनी में ढलते रहे बिछी राहों में
पगडंडी ने साथ न पग का दिया किसी भी एक मोड़ पर
मॄगतृष्णायें रहीं सँवरती, आँखों में पलती चाहों में
प्रश्न अधूरे होते अक्सर, ये तो हर कोई स्वीकारा
लेकिन तेरे आधे उत्तर की गाथायें किसे सुनायें
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5 comments:
नाविक कहकर तूने हमको दे तो दी पतवार हाथ में
लेकिन साथ साथ सौंपी हैं लहर लहर भीषण झंझायें
Waah !!! Bahut bahut bahut hi sundar sadaiv ki bhanti.
तीली की हर लौ पर तूने लगा दिये सीलन के पहरे
और कह दिया हमें, हमारी संस्कॄतियों की है यह थाती
अब ऐसी विलक्षण रचना पर क्या कहें...??? नमन करते हैं...
नीरज
नाविक कहकर तूने हमको दे तो दी पतवार हाथ में
लेकिन साथ साथ सौंपी हैं लहर लहर भीषण झंझायें
प्रश्न अधूरे होते अक्सर, ये तो हर कोई स्वीकारा
लेकिन तेरे आधे उत्तर की गाथायें किसे सुनायें
आपके गीत आपके छंद.....जीवन का गीत गाते हुवे लगते हैं
धाराप्रवाह, संगीत माय आपकी रचना मन को मोह लेती है राकेश जी
अधूरे प्रश्नों की गाथा........बहूत ही मन को छू लेने वाली रचना
नाविक कहकर तूने हमको दे तो दी पतवार हाथ में
लेकिन साथ साथ सौंपी हैं लहर लहर भीषण झंझायें
-कुछ यूँ ही है आज की यह दुनिया. बेहतरीन रचना. जय हो!!
अभीप्सित ! :) बदलियेगा इसे, ये खुला विश्व-विद्यालय है, इस ग़लती से बच्चे भ्रमित हो जायेंगे गुरुजी :)
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"लेकिन तूने दिशा बोध के जो उपकरण दिये हाथों में
वे दिखलाते पग पग पर हैं बने हुए शत शत रत्नाकर"
"लेकिन साथ साथ सौंपी हैं लहर लहर भीषण झंझायें"
"अभिलाषाओं के दीपक में बटी हुई सपनों की बाती"
"तीली की हर लौ पर तूने लगा दिये सीलन के पहरे
और कह दिया हमें, हमारी संस्कॄतियों की है यह थाती"
कलेजा मुँह को आ रहा है !
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"प्रश्न अधूरे होते अक्सर, ये तो हर कोई स्वीकारा
लेकिन तेरे आधे उत्तर की गाथायें किसे सुनायें"
अच्छा पश्न है !
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