सुनो! कहा है जबसे तुमने गीत लिखूं मैं सुन्दरता के
मैं तब ही से ढूँढ़ रहा हूँ सुन्दरता की परिभाषायें
कलियां,फूल,सेमली फ़ाहे या उड़ते बादल का टुकड़ा
परस रेशमी, छुअन भाव की किसको ज्यादा मानूं कोमल
पी के अधर, सुरभि का चुम्बन या पदचाप पवन झोंके की
या फिर गालों को सहलाते उंगली बन कर उड़ते कुन्तल
जितने भी अनुभव हैं उनकी विलग रहीं अनुभूति हमेशा
सोच रहा हूँ इनमें से मैं किसकी शुरू करूँ गाथायें
सुन्दर होता है गुलाब का फूल ! कहा तुमने, माना,पर
क्या सुन्दर है ? पाटल,पुंकेसर या गंध सुरुचिमय लगती
या विन्यास, संयोजन है या रंगभरी कुछ पंखुरियों का
या हैं सुन्दर नयन कि जिनमें है गुलाब की छवि सँवरती
एक शब्द की गहराई में कितने सागर की गहराई
यह मैं समझ सकूँ तो संभव भाव शिल्प में ढलने पायें
इतिहासों ने करवट लेकर कहा नहीं यह संभव होता
रंग और परिधान मात्र ही सुन्दरता के द्योतक हो लें
परे शिल्प के और बहुत है जो शब्दों में सिमट न पाता
और हुआ ये नहीं भेद ये शब्द आठ दस मिल कर खोलें
मन के बन्धन बांधे हैं जो भाव गूढ़ हैं सुमुखि सयानी
क्षमता नहीं स्वरों में इतनी, जो इन भावों को समझायें
दॄश्य, श्रव्य की गंध स्पर्श की सीमायें हैं अपनी अपनी
और परे क्या है परदे के जाता नहीं सदा पहचाना
मानक होते अलग, कसौटी सब की अलग अलग होती है
क्या सुन्दर, क्या नहीं असम्भव हो जाता यह भी कह पाना
सोच रहा हूँ रहूँ दूर ही, मैं ऐसे प्रश्नों के पथ से
और लिखूं वे भाव, लेखनी से जो स्वत: उभर कर आयें
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7 comments:
सबसे सुन्दर हृदय वो कविवर जो ऐसे गीत लिख पाये ! नमन !
बहुत सुंदर !
hamesha ki tarah umda!
पी के अधर, सुरभि का चुम्बन या पदचाप पवन झोंके की
या फिर गालों को सहलाते उंगली बन कर उड़ते कुन्तल
"सेमली फ़ाहे "
"परस रेशमी, छुअन भाव की"
"गालों को सहलाते उंगली बन कर उड़ते कुन्तल"
"पाटल,पुंकेसर या गंध सुरुचिमय "
"विन्यास, संयोजन है या रंगभरी कुछ पंखुरियो"
"नयन कि जिनमें है गुलाब की छवि सँवरती"
"रंग और परिधान मात्र ही सुन्दरता के द्योतक हो लें"
"दॄश्य, श्रव्य की गंध स्पर्श की सीमायें"
!!!!!!!!
शर्दुला से सहमत- उपमायें बेजोड़
sundar...! adbhut...!
बहुत खूब भाई जी !
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