आपकी प्रीत की रंगमय तितलियां, आईं उड़ने लगी मेरी अँगनाई में
चन्द झोंके हवा के मचलते हुए, ढल गये गूँजती एक शहनाई में
सांझ की काजरी चूनरी पे जड़े, आ सितारे कई पूनमी रात के
और फिर घुल गई अरुणिमा भोर की उग रही रात की श्याम परछाईं में
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नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
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जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
6 comments:
bahut hi sundar
वसन्त आ गया जी... आप की कविता में भी।
sundar panktiaN.
rakesh ji,
aapki panktiyan pasand ayin. inhen ratlam, jhabua(M.P.) aur dahod(Gujarar)se prakashit Dainik prasaran maen prakashit karane ja raha hoon.
kirpaya, aapka postal address mere mail par send karen, taki aapko prati bheji ja saken.
pankaj vyas
pan_vya@yahoo.co.in
अगला गीत कब ??
तितलियों के परों पे है राहू लगा
आप ही मर्ज की अब दवा दीजिये
बीस गीत नवम्बर के माह में लिखे
आज भी थोडा जल्दी लिखा कीजिये
:) :)
अगला गीत कब ??
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