मीत तुम्हारे हाथों की मेंहदी जब इनको छू जाती है
संध्या की पुस्तक के पन्ने तब सिन्दूरी हो जाते हैं
अभिलाषायें लिख देती हैं प्रथम पॄष्ठ पर स्वप्न सुनहले
स्वयं रंग में रँग सतरंगी हो जाता है पूर्ण कथानक
और क्षितिज की खिड़की पर आ खड़ी हुई रजनी के कुन्तल
रजत आभ से घिर जाते हैं बिना चाँद के तभी अचानक
और तुम्हारी नजरें छूकर शब्द लिखे परिशिष्ट रहे जो
पता नहीं है जाने कैसे सब अंगूरी हो जाते हैं
बिखरी हुई लालिमा आकर चेहरे को रँगने लग जाती
आंखों में खिंचने लग जातीं हैं रेखायें हुईं गुलाबी
मौसम ढल कर प्रतिमाओं में संजीवित होने लगता है
और बादलों की रंगत भी हो जाती कुछ और उनावी
खनके हुए कंगनों की धुन जब छू लेती ज़िल्द सांझ की
बिखरे सब अध्याय सिमट कर गाथा पूरी हो जाते हैं
नीड़ लौटते पाखी के स्वर में बजने लगते अलगोजे
उठ जाती है लेकर करवट, बांसुरिया की सोई सरगम
सोना बिखराने लगते हैं धारा पर दोनों के दीपक
चहलकदमियां करने लगता मंदिर का आरति स्वर मद्दम
रजनीगंधा की महकों से, उमड़ी हुई हवा के झोंके
अनायस ही एक बिन्दु पर संचित दूरी हो जाते हैं
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10 comments:
:)
pyar, prem,sneh me aisa hee hota hai." pyar naa jaane bavla jane itani baat, jo apna sab yaar ka khali apne haath"
narayan narayan
बिखरी हुई लालिमा आकर चेहरे को रँगने लग जाती
आंखों में खिंचने लग जातीं हैं रेखायें हुईं गुलाबी
मौसम ढल कर प्रतिमाओं में संजीवित होने लगता है
और बादलों की रंगत भी हो जाती कुछ और उनावी
bahut sundar
सोना बिखराने लगते हैं धारा पर दोनों के दीपक
चहलकदमियां करने लगता मंदिर का आरति स्वर मद्दम
kitna sundar chitr ubhartaa hai..
बार बार पढता हूँ और आपकी लेखनी को नमन करता हूँ ...बस...
नीरज
बहुत सुंदर रचना , सब कुछ सिन्दूरी ,यानि प्रेयसी का रंग ही हर ओर है बिखरा हुआ
गुरुजी,
अति सुन्दर! अति सुन्दर! महकती - बहकती हुई सी रचना :) आप क्या गुलाबजल से कविता लिखते हैं :)
सादर ।।
और तुम्हारी नजरें छूकर शब्द लिखे परिशिष्ट रहे जो
पता नहीं है जाने कैसे सब अंगूरी हो जाते हैं
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये बधाई
बहुत सुन्दर! इसके अतिरिक्त क्या लिखा जाये आप तो शब्दों और भावनाओं का अक्षय भंडार हैं...बस यही प्रार्थना है आप जैसा यह गुण थोड़ा सा मै भी आपसे आशीर्वाद के रूप में पा जाऊँ...
bahut he sundar rachna....
phad ke bahut accha laga....
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