पेशानी पर पड़ीं सिलवटें

पेशानी पर पड़ीं सिलवटें कितना गहरा दर्द, बतायें
एक पंक्ति में लिखे हुए हैं कितने ही इतिहास बतायें

सूरज ने खींची कूची से नित्य भाल पर जो रांगोली
मौसम ने हर रोज मनाई आ आ कर दीवाली होली
सिमट गईं पहरों की चादर्बिन्दु बिन्दु के बिखरावों में
कितनी बार पिरोई इनमें सहज गली में गुंजित बोली

जाने कितनी मेघमाल हैं इनमें, हैं कितनी शम्पायें
पेशानी पर पड़ी सिलवटें, कितना गहरा दर्द बतायें

एक रेख बतलाती आंखों के आंसू की लिखी कहानी
और दूसरी समझाती है मुस्कानों पर चढ़ी जवानी
एक बनी दिग्दर्श्क खींचे चलते हुए चित्र परदे पर
और एक में छिपी हुईं हैं कई भावनायें अनजानी

शून्य,शोर,मंगल,क्रन्दन के साथ गर्व है, हैं करुणायें
एक पंक्ति में लिखे हुए हैं कितने ही इतिहास बतायें

अनुभव की ऊंची लपटों में तपा हुआ जीवन का बर्तन"
सामंजस्यों ने टीका कर दिया लगा कर गोपी चन्दन
नजरें थक जाती तलाश कर कुछ भी अब दॄष्टव्य नहीं है
हालातों के साथ किए थे जीवन ने जितने अनुबन्धन

अपने बिम्ब देखती मन को नित अतीत मे लेकर जायें
पेशानी पर पड़ी सिलवटें, इनमें कितना दर्द बतायें

17 comments:

Dr. Amar Jyoti said...

'जाने कितनी मेघमाल हैं…'
'नज़रें थक जातीं तलाश कर…'
एक गीत में पूरा जीवन समेट दिया है।
बहुत सुन्दर्।

Satish Saxena said...

अग्रजों के प्रति आपकी यह पुष्पांजलि, नवोदित रचनाकारों के लिए प्रेरणाश्रोत साबित होगी !

श्रीकांत पाराशर said...

Peshani par padi salwaten...... Rakeshji bahut badhia.

Ghost Buster said...

राकेश जी. आपकी रचनाओं को पढ़ना बहुत सुंदर अनुभव है. मुझे आशा नहीं थी कि किसी ब्लॉग पर भी इतने उच्च स्तर के गीत पढने को मिल सकते हैं. बहुत-बहुत आभार.

नीरज गोस्वामी said...

शून्य,शोर,मंगल,क्रन्दन के साथ गर्व है, हैं करुणायें
एक पंक्ति में लिखे हुए हैं कितने ही इतिहास बतायें
अद्भुत शब्द....अद्भुत भाव....अद्भुत रचना....नमन है राकेश जी आप को बार बार नमन...ऐसी रचनाएँ पढ़वाने के लिए...
नीरज

कंचन सिंह चौहान said...

पेशानी पर पड़ीं सिलवटें कितना गहरा दर्द, बतायें
एक पंक्ति में लिखे हुए हैं कितने ही इतिहास बतायें

uttam !

रंजू भाटिया said...

शून्य,शोर,मंगल,क्रन्दन के साथ गर्व है, हैं करुणायें
एक पंक्ति में लिखे हुए हैं कितने ही इतिहास बतायें

बहुत बढ़िया कहा आपने ...बेहतरीन रचना

पारुल "पुखराज" said...

एक रेख बतलाती आंखों के आंसू की लिखी कहानी
और दूसरी समझाती है मुस्कानों पर चढ़ी जवानी
एक बनी दिग्दर्श्क खींचे चलते हुए चित्र परदे पर
और एक में छिपी हुईं हैं कई भावनायें अनजानी
aabhaar ..

Shar said...

Guruji,
yeh kya ?
"अपने बिम्ब देखती मन को नित अतीत मेम लेकर जायें"

"में" ya मेम lekar jaye ???
yeh kon si mem ke pas ja rahe hein aap:)
Chaliye aap muskuraye toh accha laga.
------------------
Bahut gambheer aur pyari rachna hei.

Shar said...

Guruji,
Aapne yeh kyon likha hei ki प्रोत्साहन dein,
Ab toh प्रोत्साहन humko aapka chaahiye.
Aap sooraj hein, hum hein kaliyaan nayein,
Humko aashishon ka palna chaahiye.
Itne aukaat kya ke प्रोत्साहन dein,
hum toh bus apko hein naman hi karien

Shar said...

शून्य,शोर,मंगल,क्रन्दन के साथ गर्व है, हैं करुणायें
=======
सूरज ने खींची कूची से नित्य भाल पर जो रांगोली
=======
अनुभव की ऊंची लपटों में तपा हुआ जीवन का बर्तन

Gruji, bahut sunder!!

Shar said...

Mere jasie non-budhhijivi log jo is blog pe aayein toh kripya चादर्बिन्दु बिन्दु ko " chaadar bindu bindu" padein. Theek hein na Guruji :)

महेन्द्र मिश्र said...

पेशानी पर पड़ीं सिलवटें कितना गहरा दर्द, बतायें
एक पंक्ति में लिखे हुए हैं कितने ही इतिहास बतायें
Bahut badhiya rachana . dhanyawad.

अमिताभ मीत said...

गुरुदेव !!

admin said...

एक रेख बतलाती आंखों के आंसू की लिखी कहानी
और दूसरी समझाती है मुस्कानों पर चढ़ी जवानी
एक बनी दिग्दर्श्क खींचे चलते हुए चित्र परदे पर
और एक में छिपी हुईं हैं कई भावनायें अनजानी।

बहुत ही प्यारा गीत है, मन में उतर जाने वाला। बधाई।

गौतम राजऋषि said...

....क्या कहूँ...इतने सुंदर भावों का उतने ही सुंदर शब्दों में इतना अद्‍भुत संयोजन."शम्पायें" का अर्थ कहीं मिल नहीं पाया.कृपा करें

Anonymous said...

शम्पायें मतलब बिजलियाँ (lightening) !

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