हर दिन यों तो तुष्टि मिली थी, लेकिन साथ जरा सा गम था
अर्थ तुम्हारी मुस्कानों का, मैने जितना समझा कम था
बिना शब्द के भी बतलाई जाती कितनी बार कहानी
ढाई अक्षर में गाथायें कबिरा ने हर बार बखानी
रावी और चिनावों की लहरों ने जिनको सरगम दी थी
इकतारे पर झंकारा करती थी जो मीरा दीवानी
नीची नजरें किये मिले तुम, उस दिन जब पीपल के नीचे
कुछ ऐसी ही बातों का वह भीना भीना सा मौसम था
गेंदे की पंखुड़ियों पर जब चढ़ते रंग घने मेंहदी के
चेहरे की पूनम में जब जब उभरे है चन्दा बेंदी के
झूमर, पायल, कंगन, टिकुली,बिछुआ, तगड़ी करते बातें
संध्या की चूनर ने बीने तम जब दीपक की पेंदी के
उस पल असमंजस कौतूहल में जो उलझी थी चेतनता
उसका प्रश्न और उत्तर से अनजाना सा इक संगम था
वाणी जब नकार देती है कभी कंठ से मुखरित होना
और हथेली बन जाती है उंगलियों का नर्म बिछौना
नख-क्षत भूमि, दांत में पल्लू, संकोचों के घने भंवर में
डूबा करता तैरा करता सुधियों का इक नव मॄग छौना
होठों की कोरों पर आकर ठिठका, फ़िसला फिर फिर संभला
वह स्मित स्वीकृति वाला था या फिर नजरों को ही भ्रम था
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12 comments:
वाह....! आपके गीत ने सुबह की ताजगी दुगुनी कर दी.... नये पोस्ट की बेसब्री से प्रतीक्षा में.....
बहुत सुंदर .
होठों की कोरों पर आकर ठिठका, फ़िसला फिर फिर संभला
वह स्मित स्वीकृति वाला था या फिर नजरों को ही भ्रम था
बेहद प्यारी लगी आपकी यह रचना
राकेश जी,
मधुर गीत जो ह्र्दय के तारों को छू कर सुरमय आलाप जगा गया..
बहुत ही मोहक गीत है। किन्तु निम्नांकित पंक्ति तो सीधे दिल में उतर गयी-
अर्थ तुम्हारी मुस्कानों का, मैने जितना समझा कम था।
बधाई।
b'ful lines..... bahut sundar
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I don’t want to love you… but I do....
वाणी जब नकार देती है कभी कंठ से मुखरित होना
और हथेली बन जाती है उंगलियों का नर्म बिछौना
नख-क्षत भूमि, दांत में पल्लू, संकोचों के घने भंवर में
डूबा करता तैरा करता सुधियों का इक नव मॄग छौना
होठों की कोरों पर आकर ठिठका, फ़िसला फिर फिर संभला
वह स्मित स्वीकृति वाला था या फिर नजरों को ही भ्रम था
kya kahe.n ki kitana bhaya ye man ko
सुंदर रचना. बधाई स्वीकारें.
हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर शब्द भाव का यह संगम.....
हर दिन यों तो तुष्टि मिली थी, लेकिन साथ जरा सा गम था
अर्थ तुम्हारी मुस्कानों का, मैने जितना समझा कम था
---वाह, बहुत सुन्दर राकेश भाई. आनन्द आ गया.
'वह स्मित स्वीकृति वाला था या…'
बहुत सुन्दर।
मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूं
वो तबस्सुम, वो तक़ल्लुम तेरी आदत ही न हो।
outstanding!
bahut hi khoobsoorat :)
khaas kar yeh:
वाणी जब नकार देती है कभी कंठ से मुखरित होना
और हथेली बन जाती है उंगलियों का नर्म बिछौना
नख-क्षत भूमि, दांत में पल्लू, संकोचों के घने भंवर में
डूबा करता तैरा करता सुधियों का इक नव मॄग छौना
होठों की कोरों पर आकर ठिठका, फ़िसला फिर फिर संभला
वह स्मित स्वीकृति वाला था या फिर नजरों को ही भ्रम था
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