आँखों के इतिहासों में पल स्वर्णिम होकर जड़े हुए हैं
जब तुमने अभिलाषाओं को मन में मेरे संवारा प्रियतम
लिखी कथा ढाई अक्षर की जब गुलाब की पंखुड़ियों पर
साक्षी जिसका रहा चन्द्रमा, टँगा नीम की अलगनियों पर
खिड़की के पल्ले को पकड़े, रही ताकती किरण दूधिया
लिखे निशा ने गीत नये जब धड़कन की गीतांजलियों पर
अनुभूति के कैनवास पर बिखरे हैं वे इन्द्रधनुष बन
जिन चित्रों के साथ तुम्हारी चूड़ी ने झंकारा प्रियतम
चन्द्रकलायें उगीं कक्ष की जब एकाकी अँगनाई में
साँसों की सरगम लिपटी जब सुधियों वाली शहनाई में
जहां चराचर हुआ एक, न शेष रहा कुछ तुम या मैं भी
हुई साध की पूर्ण प्रतीक्षा, उगी भोर की अरुणाई में
मन की दीवारों पर वे पल एलोरा के चित्र हो गये
अपनी चितवन से पल भर को तुमने मुझे निहारा प्रियतम
आकुलता के आतुरता के हर क्षण ने विराम था पाया
निगल गया हर एक अंधेरा जब अंधियारे का ही साया
मौसम की उन्मुक्त सिहरनें सिमट गईं थीं भुजपाशों में
अधर सुधा ने जब अधरों पर सावन का संगीत बजाया
एक शिला में शिल्पित होकर अमिट हो गया वह मद्दम स्वर
जिसमें नाम पिरोकर मेरा, तुम ने मुझे पुकारा प्रियतम
आलिंगन की कलियां मन में फिर से होने लगीं प्रस्फ़ुटित
अधरों पर फिर प्यास जगी है, अधर सुधा से होने सिंचित
दॄष्टि चाहती है वितान पर वे ही चित्र संजीवित हों फिर
जब पलकों की चौखट थामे, दॄष्टि खड़ी रह गई अचम्भित
फिर से वे पल जी लेने की अभिलाषा उमड़ी है मन में
इसीलिये मौसम को मैने, भेजा कर हरकारा प्रियतम
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11 comments:
Shringar ki ek anupam rachna.Bahut badhia.
फिर से वे पल जी लेने की अभिलाषा उमड़ी है मन में
इसीलिये मौसम को मैने, भेजा कर हरकारा प्रियतम
" its great, very beautifuly composed"
Regards
आलिंगन की कलियां मन में फिर से होने लगीं प्रस्फ़ुटित
अधरों पर फिर प्यास जगी है, अधर सुधा से होने सिंचित
दॄष्टि चाहती है वितान पर वे ही चित्र संजीवित हों फिर
जब पलकों की चौखट थामे, दॄष्टि खड़ी रह गई अचम्भित
बेहतरीन .सुंदर
एक शिला में शिल्पित होकर अमिट हो गया वह मद्दम स्वर
जिसमें नाम पिरोकर मेरा, तुम ने मुझे पुकारा प्रियतम
bahut sundar..
बहुत ही सुंदर स्निग्ध,शिष्ट श्रृंगार रस से उद्भुध रचना मंत्रमुग्ध कर देने में पूर्ण सक्षम.बहुत बहुत सुंदर रचना लिखी आपने.साधुवाद.
shrangaar ras ki ek sundar rachna...
Meghdoot jaise??
Guruji,
Dekha toh payaa ki is kavita pe sab se kam comments hein. Kya aap jantein hein kyon?
Kyonki yeh shasvat sach hei, ya isliye ki log sishtata ka mukhuta laga kar rahna pasand karte hein. Shringaar ki kavita pe comments dene se buddhijeevi log ghabrate hein kya! bahut sunder kavita hei! Is liye hi nahin ki jo bhi likha hei kitna sunder aur shushil hei, is liye bhi ki ..hai abhi kuch aur jo likha nahin gaya.
जब रू-ब-रू होता हूँ उसके
कुछ सूझता नहीं है
वैसे भी मेरा हाल-ए-दिल
वो पूछ्ता नहीं है !
rakesh Ji , Behtarin Rachana ke liye badhaiya....
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