दीप दोनों में रख कर बहाते रहे

प्रार्थना की सभा में लगा हाजिरी, ढोल चिमटे,मजीरे बजाते रहे
फूलमाला,प्रसादी की थाली लिये,परिक्रमा मन्दिरों की लगाते रहे
किन्तु पत्थर न कोई पसीजा कभी, चाल नक्षत्र अपनी बदल न सके
और हम भाग्य  को दोष देते हुए, दीप दोनों में रख कर बहाते
राहे

-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०

ज्योतिषी ने कहा था हमें एक दिन, हाथ की रेख कहती बनेगा धनी
हाथ पर हाथ रख बैठ हम फिर गये ,खुद चली आयेंगी पास हीरक मणी
आये मौसम,गये, वर्ष बीते बहुत, एक सूखा हुआ फूल भी न मिला
और हम अब भी बैठे प्रतीक्षा लिये,खुद ही खुल जायेगे भाग्य की चटकनी

5 comments:

Anonymous said...

bahut badhiya

चंद्रभूषण said...

पहला छंद कविता है, दूसरा तुकबंदी।

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया...राकेश भाई:

और हम भग्य को दोष देते हुए, दीप दोनों में रख कर बहाते राहे

-बहुत सटीक.

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया ।
घुघूती बासूती

सुनीता शानू said...

बहुत सुन्दर...
और हम भाग्य को दोष देते हुए, दीप दोनों में रख कर बहाते रहे...

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...