लिखता हूँ अध्याय चाह के

पुरबा ने बाँसुरिया बन कर जब छेड़ा है नाम तुम्हारा
अभिलाषा की पुस्तक में , मैं लिखता हूँ अध्याय चाह के

स्वस्ति-चिन्ह जब रँग देती है पीपल के पत्तों पर रोली
देहरी पर, अँगनाई में जब रच जाती मंगल राँगोली
आहुतियों के उपकरणों को जब संकल्प थमाता कर में
और ॠचायें भर भर लातीं स्वाहा के मंत्रों की झोली

उस पल मेरे वाम-पार्श्व का एकाकीपन बुनता सपने
एक तुम्हारी छवियों वाली अमलतास की विटप छाँह के

मलय वनों से निर्वासित गंधों ने जब घेरा चौबारा
जब ऊषा ने विश्वनाथ के द्वारे घूँघट आन उतारा
जब कपूर ने अगरु-धुम्र के साथ किया नूतन अनुबन्धन
और अवध की गलियों ने जब संध्या को कुछ और निखारा

उस पल भित्तिचित्र में ढलता बिम्ब तुम्हारा कमल्लोचने
संजीवित कर देता है सब स्वप्न संवरते बरस मास के

प्राची की अरुणाई में जब गूँजी है प्रभात की बोली
याकि प्रतीची में उतरी हो आकर के रजनी की डोली
चन्द्र-सुधा से डूबे नभ में, महके रजत पुष्प की क्यारी
दोपहरी के स्वर्ण-पात्र में जब मौसम ने खुनकें घोलीं

उस पल मेरे भुजपाशों में उतरा हुआ ह्रदय का स्पंदन
आतुर हो जाता पाने को स्पर्श यष्टि की सुदॄढ़ बाँह के

श्लोकों से स्तुत होते हैं जब मंदिर में कॄष्ण मुरारी
बरसाने का आमंत्रण जब दोहराती वॄषभानु-दुलारी
मीरा की उंगलियाँ जगातीं जब इकतारे का कोमल स्वर
और प्रीत की शिंजिनियाँ जब नस नस में जातीं संचारी

उस पल सुधि के मानचित्र पर रूप तुम्हार दिशाबोध बन
करता है गुलाब में पारिणत, सब सिकतकण बिछी राह के.

3 comments:

बालकिशन said...

अद्भुत है. आज आपका विडियो भी देखा सुनीता जी की पोस्ट पर. संचालन बहुत ही अच्छा लगा.

Rama said...

--डा. रमा द्विवेदी said...


राकेश जी,

हमेशा की तरह अनुपम ,अतुलनीय गीत...शब्द कुछ कहने में असमर्थ हैं...अति सुन्दर..

Shar said...

Aaj itna kaam tha ki kuchh time nahin nikal paya adhayyan ke liye! Par jab padha toh kya kahein, Bahut khoob!!
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Ati sunder rachana, ati pavaan ratri ko aur ati pavaan bandhan ko samarpit :)
satyam! shivam! sunderam!
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Sajani ke sang aaj sajanva
gayenge jaba geet milan ka
dwar chekaaii hum kya lenge
padraj chutaki mein bhar lenge
nakh se sikh saj priya khadi hai
jyon kapoor pe mehandi chadhi hai
aa sakhi kohabar khoob sajaayein
dweep pratikshit dwaar jalayein
hon mangal, hon pavaan ratiyaan
raat se lambii hriday ki batiyaan
sakhi chal hum bhi shagun manaayein
Geet khushi ke hum bhi gaayein !

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