गा तो दूँ मैं गीत मान कर बात तुम्हारी ओ सहराही
लेकिन तुमको मेरे स्वर से अपना कंठ मिलाना होगा
यह पथ का संबन्ध साथ ले हमको एक डगर है आया
हमने साथ साथ ही पथ में बढ़ने को पाथेय सजाया
यद्यपि नीड़ तुम्हारे मेरे अलग अलग हैं ओ यायावर
मेरे जो हैं तुमने भी तो उन संकल्पों को दोहराया
बन कर इक बादल का टुकड़ा, बन तो जाऊं छांह पंथ में
लेकिन तुमको अपनी गति से कुछ पल को थम जाना होगा
जागी हुई भोर के पंछी हैं हम तुम फैला वितान है
सजा रखा पाथेय साथ में, संचित इक लम्बी उड़ान है
मॄगतॄष्णा के गलियारों से परे बने हैं मानचित्र सब
तीर भले संधान अलग हों,करने वाली इक कमान है
लक्ष्य-भेद मैं कर तो दूंगा, एक तुम्हारे आवाहन से
लेकिन प्रत्यंचा पर तुमको आ खुद ही चढ जाना होगा
जिन प्रश्नों ने तुमको घेरा, मैं भी उनमें कभी हुआ गुम
जिन शाखों पर कली प्रफ़ुल्लित,उन पर ही हैं सूखे विद्रुम
क्यों पुरबा का झोंका कोई, अकस्मात झंझा बन जाता
जितना कोई तुम्हें न जाने,उतना जान सको खुद को तुम
मैं उत्तर बन आ तो जाऊं उठे हुए हर एक प्रश्न का
लेकिन उससे पहले तुमको प्रश्न स्वयं बन जाना होगा
मैं चुनता हूँ वन,उपवन,घर-आँगन में बिखरे छंदों को
संजीवित करता हूँ पथ पर चलने की सब सौगंधों को
भाषा की फुलवारी में जो मात्राओं के साथ किये हैं
अक्षर ने, मैं दोहराता हूँ उन वैयक्तिक अनुबन्धों को
बन कर गीत संवर जाऊंगा मैं मन कलियों के पाटल पर
लेकिन तुमको अर्थों वाले शब्दों में ढल जाना होगा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
5 comments:
हमेशा की तरह अच्छी पंक्तियां.
फोंट को थोड़ा छोटा कर लें तो सब एक लाइन में ही दिखने लगेगा.
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
अर्थों वाले शब्दों में ढल जाना होगा -- सुन्दर सत्य !
बन कर इक बादल का टुकड़ा, बन तो जाऊं छांह पंथ में
लेकिन तुमको अपनी गति से कुछ पल को थम जाना होगा
लक्ष्य-भेद मैं कर तो दूंगा, एक तुम्हारे आवाहन से
लेकिन प्रत्यंचा पर तुमको आ खुद ही चढ जाना होगा
इतना अच्छा कैसे लिख लेते है आप?
Post a Comment