आपकी प्रीत में डूब कर मीत हम, भोर से सांझ तक गुनगुनाते रहे
नैन के पाटलों पर लगे चित्र हम रश्मि की तूलिका से सजाते रहे
आपके होंठ बन कर कलम जड़ गये, नाम जिस पल अधर पर कलासाधिके
वे निमिष स्वर्णमय हो गये दीप से, बन के दीपावली जगमगाते रहे
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नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
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जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
2 comments:
बेहतरीन!!
जाने कैसे सुन्हरे ये शब्दार्थ है
कान में गूँज बनकर बुलाते रहे.
दाद के साथ
देवी
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