चिट्ठा लिख कर गया फ़ंसाया, यह बेजी की कारस्तानी
सोचा, मुझको लिखनी होगी इसी बहाने एक कहानी
लेकिन गद्य नहीं लिखता मैं, सीमाओं से अपनी परिचित
अब बतलाओ सही लिखा या फिर लिख कर की है नादानी
१.आपकी सबसे प्रिय पिक्चर कौन सी है? क्यों?
पिछले पच्चीस वर्षों में कोई फ़िलम, मैने गंभीर होकर के देखी नहीं
आप विश्वास चाहे करें न करें, किन्तु सच कह रहा, है हकीकत यही
देती आनंद, चेतन को झकझोर कर,तात्कालिक परिस्थिति बताती हुई
होके मज़बूर मुझको भुलाया गया, गीत गाता हूँ मैं आज भी बस वही
साथ इसके,किसी से न कहना कभी, बात अभिमान की मैं नहीं कह रहा
ए रिवर रन थ्रू इट, तुम्हें है पता, एक निर्झर कभी था यहाँ बह रहा
और ज्यादा नहीं मैं बता पाऊंगा, देखता हूँ तभी, जब समय मिल सके
और टीवी दिखाता है जो आजकल यों लगा है कि बस यातना सह रहा
२.आपके जीवन की सबसे उल्लेखनीय खुशनुमा घटना कौन सी है ?
पहली बार मंच पर नीरज ने मुझको आशीष दिया जब
उम्र यही थी तेरह चौदह, , और सराहा श्री व्यास ने
लगभग चार दशक बीते हैं, लेकिन याद अभी हैं ताजा
सांझ सवेरे, चित्र आज तक, आँखों के है रहा सामने
३.आप किस तरह के चिट्ठे पढ़ना पसन्द करते/करती हैं?
कविता, लेख, कहानी सब ही पढ़ता, जितना समय मिल सके
मनपसंद मंतव्य, साथ में फ़ुरसतिया के लंबे चिट्ठे
कभी बताशे पानी वाले, उड़न तश्तरी औ' प्रत्यक्षा
कविता वाले लिखूँ अगर सब मेरे ही छूटेंगे छक्के
किन्तु साफ़ यह बतलाता हूँ सीमित समय पास है मेरे
दफ़्तर में रहती सदैव ही गहन व्यस्तता मुझको घेरे
घर आकर बाकी कामों से जो बचता, उसमें पढ़ता हूँ
शेष समय यों कटा लेखनी टूटे फ़ूटे शब्द चितेरे
४.क्या हिन्दी चिट्ठेकारी ने आपके व्यक्तिव में कुछ परिवर्तन या निखार किया?
यही कहूँगा परिचय की सीमायें और अधिक फैलीं हैं
यहाँ कनाडा से लेकर के गुड़गांवा, रांची देहली है
इधर कुवैत और यू ए ई, कम्पाला भी जुड़ा आजकल
निखर रही हैं गज़ल देख कर नई नई निशि दिन शैली है
५.यदि भगवान आपको भारतवर्ष की एक बात बदल देने का वरदान दें, तो आप क्या बदलना चाहेंगे/चाहेंगी?
नीति प्रदूषित आरक्षण की सबसे ज्यादा मुझे अखरती
ऐसे परिवेशों में प्रतिभा, जाति भेद के बोझों दबती
मुझे विदित है सहमत मुझसे शायद अधिक लोग न होंवे
पर यह मेरी एक धारणा, जो समाज को सत्य बदलती
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अब जैसे परिपाटी है मैं यह श्रंखला बढ़ाता आगे
कुंअर भावना जी, निनाद के अभिनव को देता आवाज़ें
औ प्रभात टंडन जी तीजे,, चौथे पर रंजू लिख देंगी
फिर दिव्याभ छेड़ दें आकर सरगम के स्वर सज्जित बाजे
प्रश्न पाँच यह- क्यों लिखते हो, क्या लिखने को प्रेरित करता
कला पक्ष से भाव पक्ष का कितनी दूर रहा है रिश्ता
कितना तुम्हें जरूरी लगता,लिखने से ज्यादा पढ़ पाना
मनपसंद क्यों विधा तुम्हारी, और किताबों का गुलदस्ता.
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11 comments:
कविता में प्रश्नोत्तरी का यह रूप अति सुंदर
तो टिप्पणियों को हम क्यूं बनाएँ असुंदर
आपने अपने जवाब से हमको लुभाया है
कठिन प्रश्नों को भी कैसे कविता बनाया है
कहा आपने है कविवर तो कुछ ना कुछ लिखना ही होगा,
शब्दों के आडम्बर में कुछ अगड़म सा दिखना ही होगा,
वाह भाई पद्य में जवाब
कविवर आपके पढ़कर जवाब हम हो गए निहाल हैं,
ऐसे जवाब पढ़े नहीं अब तक ये आपके ही कमाल हैं।
यह हुई ना बात !!
मन की बात लबों पर तो सबके आती होगी,
लेकिन कोयल सिर्फ आपके ही छंद गाती होगी.
गीतिका में बांध दे जो हर बात दिल की ऐसे
यह विधा आपके सिवा और किसे आती होगी.
---वाह राकेश भाई, आपने कमाल कर दिया. बहुत बधाई.
"हिलोर कर मन विशिष्टता के अतिरेक को
बनाया नया उत्कृष्ट वृतांत…कहते-कहते
दूर दृष्य को निकट बोध की औ सुध दी
एक छेड़ा कुछ थोड़ा और पूरी लौ प्रज्जवलित
कर दी।"
कोशिश होगी हमारी मैं पूरा करुं इस ध्यय को
इधर व्यस्तता बड़ी है ऐसा बंधा हुआ हूँ मैं॥
आपका अंदाज़ निराला !!
राकेश जी अच्छे लगे आपके विचार। बहुत-बहुत बधाई। आखिर आपने हमें भी नहीं छोड़ा खैर जल्दी ही आते हैं आपके प्रश्नों के जवाब लेकर।
राकेश जी आपके प्रश्नों के उत्तर कविता में ही देना का एक छोटा सा प्रयास किया है पढ़ने के लिये यहाँ
aapke baare mein itna jaanne ko mila
Beji ji ka yeh ehsaan mjuh pe raha!
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