हर एक दिशा में एक चित्र
हर स्वर में घुलता नाम एक
लहराती हुई हवाओं के
हर झोंके का गुणगान एक
लहरों की हर अठखेली में
तट से मिलते संदेशों में
जलकन्याओं के नीलांचल
से सज्जित सब परिवेशों में
अंबर पर और धरातल पर
हर इक आवारा बादल पर
जिस ओर नजर दौड़ाता हूँ
बस दिखता मुझे निशान एक
उगते सूरज की किरणों में
अलसी हर एक दुपहरी में
तालाब,वावड़ी पोखर से
लेकर हर नदिया गहरी में
संध्या के रंगी अम्बर के
गुपचुप बतियाते अम्बर के
हर इक पल में हर इक क्षण में
बस गुंजित होती तान एक
होने में और न होने में
कुछ पा लेने, कुछ खोने में
मिलता जो सहज पूर्णता में
या मिलता औने पौने में
अस्तित्व बोध में जो व्यापक
सांसों की वंशी का वादक
हर एक कल्पना पाखी की
वह बन कर रहा उड़ान एक
वह चेतन और अचेतन में
वह गहन शून्य में टँगा हुआ
विस्तारित क्षितिजों से आगे
है रँगविहीन, पर रँगा हुआ
जीवन पथ का वह केन्द्र बिन्दु
जिसके पगतल में सप्त सिन्धु
वह प्राण प्रणेता, प्राण साध्य
वह इक निश्चय, अनुमान एक
बस एक नाम वह नाम एक
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4 comments:
होने में और न होने में
कुछ पा लेने, कुछ खोने में
मिलता जो सहज पूर्णता में
या मिलता औने पौने में
अस्तित्व बोध में जो व्यापक
सांसों की वंशी का वादक
हर एक कल्पना पाखी की
वह बन कर रहा उड़ान एक
इन पंक्तियों में शब्द चयन, लयबद्धता, और कल्पना की उड़ान विशेष रूप से सुन्दर है।
सुन्दर परिकल्पना.
धन्यवाद आप दोनो को
कौन जाने आपका मनमीत बन लिखवा रहा
कभी हवा कभी बादलों का गीत बन कर गा रहा ।
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