आज विधेयक एक किया पारित मेरे नयनों ने
अब न याद के क्षण में कोई अश्रु बहाया जाये
एकाकी पल को न मिलेगी आप्रवास की अनुमति
चाटुकार होकर मन चाहे जितनी स्तुतियां गाये
दोष हृदय का, करे प्रेम की वही प्रज्ज्वलित ज्वाला
अपनी सुधि को बिसराकर गुम हो जाता मतवाला
बुनता रहता आस मिलन की लिये निमिष की डोरी
और कहे वाणी से जपते रहो नाम की माला
करता है अतिक्रमण, नयन की सीमा पर, हताश हो
चिन्ह रेत पर बना, हवा में अगर बिखरता जाये
दोषी भुजा, समेटें यादें पल के आलिंगन की
और अधर दोहरायें स्मृतियां रसभीने चुम्बन की
श्रवणेन्द्रियां आतुरा रह-रह सुनें नाम वह केवल3
और कल्पना रहे चितेरे छवि माधुर्य मिलन की
डाल रहे मिल कर दबाव सब,बार-बार आँखों पर
सारे दृश्य भुला कर, केवल सपना एक सजाये
क्षण भर देखा था नयनों ने इसके अपराधी हैं
किन्तु पूर्ण आक्षेप लगा है तब ही प्रतिवादी हैं
इसीलिये विद्रोह-विधा मिलकर नयनों ने ठानी
वरना सहज समर्पण कर देते गाँधीवादी हैं
आपत्काली सत्र बुला कर यह निर्णय ले डाला
अब विरोध में चाहे जितनी,मन रैलियां सजाये
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