आपकी उंगलियों का परस पायेंगे
और आँचल के झोंके जो दुलरायेंगे
पतझड़ों की गली में भी ओ ज्योत्सने
मोगरा,जूही चम्पा महक जायेंगे
आपकी पायलों से बहारें बँधी
बाग की हर कली को ये विश्वास है
आपकी एक पदचाप में ही निहित
धड़कनों का खनकता हुआ साज है
कोयलों की कुहुक,गान भ्रमरों के सब
आपकी प्रेरणा से उदित हो रहे
शाख पर फूल बन कर सँवरता हुआ
आपके रूप का एक अंदाज़ है
आपके पग उठेंगे जिधर रूपसि
मेघ सावन के उस ओर ही जायेंगे
मौसमों की है हर एक करवट बँधी
आपके कुन्तलों में गुँथी डोर से
भोर,संध्या, निशा की जुड़ी किस्मतें
आपकी ओढ़नी के किसी छोर से
सॄष्टि सम्मोहिता एक चितवन से है
बंद पलकों में जीवन के अध्याय नव
राग,स्वर,नाद,सरगम का उद्गम रहा
है बँधा, उंगलियों के किसी पोर से
आप नजरें उठा कर गगन देख लें
भोर के सब सितारे उभर आयेंगे
झील में इक कमल पत्र पर हो खड़ा
वक्त आतुर इशारा मिले आपका
तो कदम अपने आगे बढ़ाकर लिखे
फिर नया एक इतिहास,नूतन कथा
आपकी मुट्ठियों में है सिमटा हुआ
भाग्य की लेख,चित्रित है रेखाओं में
देविके ! आपमें जो समाहित दिखा
न ही होगा कभी, न ही है, औ न था
आपके रूप का गान यदि कर सकें
शब्द कहते हैं वे धन्य हो जायेंगे
राकेश खंडेलवाल
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1 comment:
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