व्यूह खामोशियां हैं बनाये रहीं
और मन उन से नजरें चुराता रहा
अक्षरों में था मतभेद जुड़ न सके
शब्द पा न सके वाक्य की वीथिका
कुछ अलंकार षड़यंत्र रचते रहे
कुछ ढिंढ़ोरा बजाते रहे रीति का
मानचित्रों की रेखायें धुंधली हुईं
कोई पा न सका व्याकरण की गली
भावनायें भटकती रहीं रात दिन
रह गई अधखिली भाव की हर कली
जेठ होठों पे पपड़ी बना, बैठ कर
नैन के सावनों को चिढ़ाता रहा
स्वप्न थे रात के राह भटके हुए
कुछ मुसाफ़िर जो आये नहीं लौट कर
ड्यौढ़ियों पर नयन की चढ़े ही नहीं
जो गये एक पल के लिये रूठ कर
रात की स्याह चादर बिछाये हुए
नींद अँगनाई बैठी प्रतीक्षित रही
आया लेकिन नहीं एक दरवेश वो
प्रीत की एक जिसने कहानी कही
भोर का एक तारा मगर द्वार पर
हो खड़ा, व्यंग से मुस्कुराता रहा
दायरे परिचयों के हुए संकुचित
बिम्ब अपने भी अब अजनबी हो गये
उंगलियां थाम कर थे चले दो कदम
आज पथ के निदेशक हमें हो गये
स्वर निकल कर चला साज के तार से
देहरी पार फिर भी नहीं कर सका
राग याचक बने हाथ फैलाये थे
एक धुन, गूँज कोई नहीं भर सका
मौन फौलाद की एक दीवार का
क्षेत्रफ़ल हर घड़ी है बढ़ाता रहा
वादियों में भ्रमण के लिये थी गई
लौटी वापिस नहीं,ध्वनि वहीं खो गई
और आवाज़ को खोजते खोजते
एक निस्तब्धता अश्रु दो रो गई
शेष कुछ भी नहीं जो कहें या सुनें
माध्यमों से कटी आज अनुभूतियाँ
और परिणाम है अंत में सामने
बन चुकी हैं विजेता ये खामोशियाँ
शब्द अपने गंवा, कंठ का स्वर लुटा
बस अधर बेवज़ह थरथराता रहा
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4 comments:
जहन की रोशनी में अंगड़ाईयां लेते है कुछ अश्यार
चाहती हूँ लूँ इन्हें किसी कागज़ पर उतार
पर कलम नहीं फिसलती,पेन से स्याही नहीं निकलती
सर्द शुष्क हवायों से शायद गई है सूख
हाय यह बेबसी ,बदहाली और बड़ती भूख ।।
स्वप्न थे रात के राह भटके हुए
कुछ मुसाफ़िर जो आये नहीं लौट कर
ड्यौढ़ियों पर नयन की चढ़े ही नहीं
जो गये एक पल के लिये रूठ कर
रात की स्याह चादर बिछाये हुए
नींद अँगनाई बैठी प्रतीक्षित रही
आया लेकिन नहीं एक दरवेश वो
प्रीत की एक जिसने कहानी कही
बहुत सुंदर !
बहुत सुंदर ! हमेशा की तरह
व्यूह खामोशियां हैं बनाये रहीं
और मन उन से नजरें चुराता रहा
Above lines are a complete song in themselves.
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कुछ अलंकार षड़यंत्र रचते रहे
कुछ ढिंढ़ोरा बजाते रहे रीति का
Can have multiple interpretations, Powerful lines!
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आया लेकिन नहीं एक दरवेश वो
प्रीत की एक जिसने कहानी कही
Exquisite!
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भोर का एक तारा मगर द्वार पर
हो खड़ा, व्यंग से मुस्कुराता रहा
Very mean !! :)
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दायरे परिचयों के हुए संकुचित
How apt!
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राग याचक बने हाथ फैलाये थे
very graphic!
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मौन फौलाद की एक दीवार का
क्षेत्रफ़ल हर घड़ी है बढ़ाता रहा
beautiful!
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Well done! A meaningful poem.
Now the million dollar question -- What's the remedy?
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