शची के कान का झूमर छिटक कर आ गिरा भू पर
या नख है उर्वशी के पांव का जो फूल बन आया
पड़ी है छाप कोई ये हिना रंगी हथेली की
किसी की कल्पना का चित्र कोई है उभर आया
चमक है कान की लौ की, लजाती एक दुल्हन की
उतर कर आ गई है क्या, कहीं संध्या प्रतीची से
किसी पीताम्बरी के पाट का फुँदना सजा कोई
कहीं ये आहुति निकली हुई है यज्ञ-अग्नि से
किसी आरक्त लज्जा का सँवरता शिल्प ? संभव है
जवाकुसुमी पगों की जम गई उड़ती हुई रज है
या कुंकुम है उषा के हाथ से छिटका बिखर आया
या गुलमोहर, लिये ॠतुगंध, शाखों पर चला आया
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नव वर्ष २०२४
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5 comments:
लोग तो गुलमोहर के फूल में भी गुलमोहर का सौन्दर्य नहीं देख पाते और आपने एक अकेले गुलमोहर में पूरे विश्व का सौन्दर्य दर्शन कर लिया। ऊर्वशी के नख और अहुति की उपमा बहुत ही अद्भुत हैं।
ये गुलमोहर का रंग तेरे चेहरे पे क्या निखरा
शुचि के कान का झूमर धरा पर ऐसे क्या बिखरा
तेरे चेहरे की रक्तिम लालिमा को कैसे मैं देखूँ
हथेली में भरे ये लाल दहकते फूलों को देखूँ
तुम्हारे नर्म होठों पर दहक जाते हैं गुलमोहर
तुम्हारे बाल पर भी तो सजते हैं ये गुलमोहर
नज़र में अब समाई है ये लाली लाल लाली है
तेरा चेहरा नज़र आये, नज़र आती है गुलमोहर
jo janta hai sab,
wohi jab prashn hai karta
use kya hum kahnein ab
pyaar ki tere hi laali hai
javakusum ki mahak,
ya chandan dhoop hai koi
jisme man deep hai jalta
woh teri hi Diwlai hai !
sorry that was the last one, i promise :(
बहुत ही सुन्दर और मनमोहक कल्पना, कुछ बिम्ब इतने प्यारे कि एकदम अटक सा जाता है मन उन पंक्तियों पे! कौन से वाले ? क्यों बताएं :) :)
मैं सुबह सोच ही रही थी कि ये क्या जब देखो तब बसंत सी बहार क्यों रहती है चारों तरफ साल भर :) अब समझ आया आपके इतने "गुलमोहरी गीत" जो पढती हूँ!
Dec09
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