कोष के शब्द सारे विफ़ल हो गये भावनाओं को अभिव्यक्तियाँ दे सकें
सांस तुम से मिली, शब्द हर कंठ का, बस तुम्हारी कॄपा से मिला है हमें
ज़िन्दगी की प्रणेता, दिशादायिनी, कल्पना, साधना, अर्चना सब तुम्हीं
कर सकेंगे तुम्हारी स्तुति हम कभी, इतनी क्षमता न अब तक मिली है हमें
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
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प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
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हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
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जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...