लिख पाया नहीं गीत कोई, थक गई कलम कोशिश करते
हो गये अजनबी शब्द सभी, फिर कहते भी तो क्या कहते
हड़ताल भावना कर बैठी, मन की है अँगनाई सूनी
सपनों ने ले सन्यास लिया, बैठे हैं कहीं रमा धूनी
हो क्रुद्ध व्याकरण विमुख हुई, छंदों ने संग मेरा छोड़ा
अनुबन्ध अलंकारों ने हर, इक पल में झटके से तोड़ा
अधरों के बोल थरथरा कर हो गये मौन डरते डरते
लिख पाया नहीं गीत कोई, थक गई कलम कोशिश करते
पत्थर पर खिंची लकीरों सी आदत थी हमको लिखने की
भावुकता के बाज़ारों में थी बिना मोल के बिकने की
सम्बन्धों को थे आँजुरि में संकल्पों जैसे भरे रहे
हर कोई होता गया दूर, हम एक मोड़ पर खड़े रहे
मरुथल का पनघट सूना था, टूटी गागर थी क्या भरते
हो गये अजनबी शब्द सभी, हम कहते भी तो क्या कहते
गलियों में उड़ती धूल रही उतरी न पालकी यादों की
पांखुर पांखुर हो बिखर गई जो पुष्प माल थी यादों की
बुझ गये दीप सब दोनों के लहरों पर सिरा नहीं पाये
सावन के नभ सी आशा थी, इक पल भी मेघ नहीं छाये
मन की माला के बिखरेपन पर नाम भला किसका जपते
लिख पाया नहीं गीत कोई, थक गई कलम कोशिश करते
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