लिखी है पाँखुरी पर ओस से जो भोर ने आकर
तुम्हारे नाम भेजी थी वो मैने प्यार की पाती
चितेरी वादियों में गंध ने पुरबाई से मिलकर
सपन की चूनरी, है जन्म के अनुबंध से काती
नयन की छैनियों ने कल्पना को शिल्प में ढाला
हृदय की आस ने वरदान को आकार दे डाला
हजारों साधनायें आज हैं अस्तित्व में आईं
तपस की साध ने जिनको अभी तक मंत्र में पाला
ढली है आज जो प्रतिमा, तुम्हें शायद विदित होगा
क्षितिज पर रोज ही प्राची, यही इक चित्र रच जाती
अधर के बोल के आमंत्रणों का आज यह उत्तर
गगन से रश्मियों के साथ आया है उतर भू पर
बँधे जो धड़कनों से साँस के सौगन्ध के धागे
लगा है गूँजने कंपन भरा उनका सुरीला स्वर
मचलतीं लहरियाँ फिर आज वे सब गुनगुनाती सी
जिन्हें हम छेड़ते थे साँझ को करते दिया-बाती
लगा यायावरी हर कामना ने नीड़ पाया है
तुम्हारे पंथ ने सहचर मुझे अपना बनाया है
पड़ी इक ढोलकी पर थाप, ने शहनाई से मिल कर
पिरो नव-राग में वह गीत फिर से गुनगुनाया है
जिसे तुम बैठ कर एकाकियत के मौन इक पल में
नदी की धार के संग सुर मिला कर थीं रही गाती
राकेश खंडेलवाल
अगस्त २००५
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2 comments:
phir late!! ek din se is baar :)
"चितेरी वादियों में गंध ने पुरबाई से मिलकर
सपन की चूनरी, है जन्म के अनुबंध से काती"--
aur rang?
"नयन की छैनियों ने कल्पना को शिल्प में ढाला
हृदय की आस ने वरदान को आकार दे डाला
हजारों साधनायें आज हैं अस्तित्व में आईं
तपस की साध ने जिनको अभी तक मंत्र में पाला
ढली है आज जो प्रतिमा, तुम्हें शायद विदित होगा"
Ji.
"मचलतीं लहरियाँ फिर आज वे सब गुनगुनाती सी
जिन्हें हम छेड़ते थे साँझ को करते दिया-बाती"
:)
"लगा यायावरी हर कामना ने नीड़ पाया है
तुम्हारे पंथ ने सहचर मुझे अपना बनाया है"
wah!
"जिसे तुम बैठ कर एकाकियत के मौन इक पल में
नदी की धार के संग सुर मिला कर थीं रही गाती"
??
bahut sunder!!
badi rochak paati hai :)
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