बहुत दिनों के बाद पेड़ पर आकर बैठी सोनचिरैय्या
बहुत दिनों के बाद बांसुरी से गूंजे हैं सरगम के सुर
बहुत दिनों के बाद आज इक आया है भटका संदेसा
पुरबाई की अंगड़ाई में गूँथ किसी ने जो था भेजा
बहुत दिनों के बाद करवटें लेकर जागीं सोई शपथें
बहुत दिनों के बाद आज कुछ व्यस्त हुआ मन का रंगरेजा
घुले धुंधलकों में से उभरा चित्र नया कोई सहसा ही
बहुत दिनों के बाद स्वप्न हैं हुए नयन छूने को आतुर
अरसे बाद दूब ने थामा हाथ ओस का हाथ बढ़ाकर
ले मरीचिकायें अपने संग गये उमड़ते मेघ उड़ाकर
बहुत दिनों के बाद आज फिर लहराई रंगीन चुनरिया
बहुत दिनों के बाद पपीहा मचला भंवरे के संग गाकर
बहुत दिनों के बाद पखारे चरण स्वयं के आज उसी ने
मंदिर मंदिर घूम रही थी भरी नीर की जो इक आंजुर
बहुत दिनों के बाद आज फिर बोला है मुंड़ेर पर कागा
बहुत दिनों के बाद बँधा है बरगद पर मन्नत का धागा
बहुत दिनों के बाद नदी ने छेड़ी है तट पर सारंगी
बहुत दिनोंके बाद समय का सोया हुआ प्रहर इक जागा
बहुत दिनों के बाद आज उन शब्दों ने पाई परिभाषा
बन्द पुस्तकों में जो रहते बने फूल की सूखी पांखुर
बहुत दिनों के बाद गीत इक गूँजा वीणा के तारों पर
बहुत दिनों के बाद किसी का पिघला है मन मनुहारों पर
बहुत दिनों के बाद, महावर ने की हैं मेंहदी से बातें
बहुत दिनों के बाद चढ़ा है रंग निखरता कचनारों पर
बहुत दिनों के बाद चाँदनी झांकी अम्बर की खिड़की से
बहुत दिनों के बाद होठ पर थिरका है स्वीकॄति का माधुर
बहुत दिनों के बाद किसी की यादों का चन्दन महका है
बहुत दिनों के बाद किसी के सपनों का पलाश दहका है
बहुत दिनों के बाद हुई है मन में कोई आस तरंगित
बहुत दिनों के बाद पखेरू बन कर पुलकित मन चहका है
बहुत दिनों के बाद आज फिर बही हवा की उंगली पकड़े
बजने लगे गंध की धुन पर बरखा की फ़ुहार के नूपुर.
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17 comments:
:)
बहुत ही सुन्दर।
कभी समय मिले तो नागार्जुन की इसी शीर्षक की कविता देखें।
"बहुत दिनों के बाद पखारे चरण स्वयं के आज उसी ने
मंदिर मंदिर घूम रही थी भरी नीर की जो इक आंजुर"
अति सुन्दर कविराज !
यूं तो...
बहुत दिनों बाद.आज फिर आप दीखे..तो सोनचिरैय्या ही माना जायेगा आपको!!
बहुत उम्दा रचना!! गजब रचना है..बधाई.
अलग सा है आपकी अन्य रचनाओं से...सुंदर है।
ek khubsurat kavita padhi..bahut dino ke baad!
मज़ा आगया ! आपका नया अंदाज़ !
bahut hi khubsurat kavita,badhai
बहुत दिनों के बाद आज इक आया है भटका संदेसा
पुरबाई की अंगड़ाई में गूँथ किसी ने जो था भेजा
बहुत दिनों के बाद करवटें लेकर जागीं सोई शपथें
बहुत दिनों के बाद आज कुछ व्यस्त हुआ मन का रंगरेजा
" bhut sunder geet.."
Regards
सबकुछ पाने के लिए बहुत दिनों का इंतजार करना पडता है , अच्छा है आपकी कविताएं समय समय पर मिल जाती है।
एक बार फ़िर एक और अद्भुद गीत....हमेशा की तरह ,मन को मुग्ध और रागमयी करती हुई.......साधुवाद.
बहुत सुंदर गीत ..अदभुत मन्त्र मुग्ध सा हो गया मन पढ़ते पढ़ते
मुझे भी यही लगा शीर्षक से की ये "बहुत दिनों के बाद खिड़कियाँ खोली हैं " कविता होगी.
डा. अमर ज्योति से निवेदन है की कृपया कविता का लिंक प्रदान करे.
बहुत दिनों के बाद आज इक आया है भटका संदेसा
पुरबाई की अंगड़ाई में गूँथ किसी ने जो था भेजा
बहुत दिनों के बाद करवटें लेकर जागीं सोई शपथें
बहुत दिनों के बाद आज कुछ व्यस्त हुआ मन का रंगरेजा
बहुत अच्छा लिखा है.
राकेशजी ..पसँद आई कविता ..आप इसी तरह लिखते रहेँ
- लावण्या
एक प्रतीक्षा रत मानस की चाहत पूर्णता पर सुन्दर रचना
बहुत दिनों के बाद बँधा है बरगद पर मन्नत का धागा
Aur agar bargad ka pead na ho aas paas toh kya karein?
345600 :)
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