अगस्त लढ़लताजुआमाँ महीना और सितंबरमौले धीमे बढ़ाते हुए लड़कों की अजात। सुबह १२-१६अंश सेल्सियस की हवा का गालों को हल्के से चूमना तो ऋतु संधि के इस अवसर पर कलम अपने आप मचलने
लगती है ——-//
सम की कारावास से कितनी आज खिली यादों की कलियाँ
फिर अतीत के पृष्ठ खोल कर बैठ गया ये आवाजाही मन
पिछवाड़े की बस्ती में खपरैलों पर गिरती बारिश की
बूँदों का होता तबले पर पड़ती थापों जैसा गुंजन
बरसात पर तनी टीन की चादर से बहती धारों का
छत पर गिरते। हुए बजाना पेंजनियाँ की मादक रुनझुन
आसमान पर घिरती हुई घटाईं के श्यामल रंगों में
भीग हुए चिकुर से छिटका छिटका सा जैसे अल्हड़ापन
सावन के झूलों की पेंगों में लिपटी हुई उमंगें कितनी
राखी के धागों में कितने रहे अनुस्यूत है संदेश
बादल की खीरियों से छानती हुई इ किरणें सतर गोन वाली
कितने हैं संदेश यक्ष ने मेघदूत के हाथो भेजे
नादिया की लहरों ने तट पर फिर आकार खेली अठखेली
रोम रोम को सिहरता है जलतरंग का मद्दम कंपन
जलाते हुए दिवस के अधरों की तृष्णाएँ तृप्त हो चली
दोपहरी ने तह कर रख दी ओढ़ी गर्म की चादर
हरियाली शीतल चूनर को ओढ़े सकल दिशायें पुलकित
लगे लौट कर नीड साँझ के , घूम थके दिन के यायावर
रजनी के तन पर चढ़ने लग गया नींद का अलसाया पन
लगी फैलने धीरे धीरे सिमटी हुई देह की सिकुड़नी
देवलोक में अंगड़ाई ले लगे जागने सारे पूजित
कालिन्दी हो रही आतुरा बालकृष्णन के चरण चूमने
सजे अयोध्या के गलियारे दीप पुष्प की ले मालाएँ
लंका विजय प्राप्त कर आते रघु-सीता के साथ झूम लें
उल्लासों की गागर रह रह छलक रही है है ज़हर से ही
धारावाहिक व्यस्त होने लाह है लगे इंदूर की थिरकने
राकेश खंडेलवाल
अगस्त २०२३