गीता शास्त्र प्रणेता माधव मधुसूदन घनश्याम
तुमको शत शत वन्दन मेरे लाखों कोटि प्रणाम
तुम विराट, तुम सूक्ष्म, सूक्ष्मतर, तुम ही सृष्टि रचेता
तुम ही सब प्रश्नों के उत्तर और तुम्हीं नचिकेता
तुम ही वाहन, तुम ही वाहक हो सब के जीवन के
दृश्य तुम ही हो, और तुम ही अनदेखे हर क्षण से
तुम हो खांडव वन की ज्वाला तुम बासंती शाम
तुमको कोटि कोटि वंदन हैं लाखों सहस प्रणाम
कालसर्प के नाथ नाथैया तुम गोकुल के बाँके
एक तुम्हारी ही छवि आकर ब्रह्मा शंकर ताके
अभिशापों के तुम्हीं निवारक, दुष्ट विनाशक तुम ही
तुम संस्थापक धर्म ध्वजा के सत्य मार्ग तुम से ही
मधुर शांति की सरगम हो तुम, निशि-दिन आठों याम
तुमको शत-शत नमन करूँ मैं, अनगिन कोटि प्रणाम
राजपुत्र के सखा अनूठे मित्र सुदामा के भी
प्रीत निराली राधा की तुम, पूजित मीरा से भी
कूटनीतियाँ, राजनीतियाँ,युद्ध नीतियाँ तुमसे
तुम ही हो सर्वत्र अकेले, अंतरहित उद्गम से
कर्मयोग परिभाषित करता श्री कृष्ण का नाम
करूँ तुम्हारा चिंतन हर पल करते हुए प्रणाम
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