बूँद भर जल बन गया आशीष, तेरा स्पर्श पाकर
चल दिया मैं आचमन कर तेरी स्तुतियाँ की डगर पर
मैं अजाना था कहाँ पर शब्द की जागीर फैली
और स्वर की सरग़मों की वीथियों की क्या दिशाये
दूर तक कोई नहीं था जो मुझे निर्देश देता
किस तरह से शब्द चुन कर राग में उनको सजायें
बूँद भर जल बन गया शतदल कमल के पत्र से झर
एक वह पथ का प्रदर्शक जो दिशा करता उजागर
स्वाति के नक्षत्र की इक बूँद का जल बन गया था
भिन्न गुण वाला परिस्थिति साथ जैसी मिल गई थी
उड़ गया कार्पूर बन कर याकि मोती बन गया था
हो गया विष जब कि संगत शेषनागी हो गई थी
किंतु तेरी वीण के इक तार की झंकार छू कर
ज्ञान का भंडार होकर छा गया पूरे जगत पर
बूँद भर जल मेघगृह में जा हुआ है शत सहस्त्रित
और फिर बरखा बना है भूमि की तृष्णा बुझाने
ईश का वरदान बन कर जब सज़ा नत भाल पर तो
कालिदासों के मुखों से लग गया कविता बहाने
चल दिया मैं आचमन कर तेरी स्तुतियाँ की डगर पर
मैं अजाना था कहाँ पर शब्द की जागीर फैली
और स्वर की सरग़मों की वीथियों की क्या दिशाये
दूर तक कोई नहीं था जो मुझे निर्देश देता
किस तरह से शब्द चुन कर राग में उनको सजायें
बूँद भर जल बन गया शतदल कमल के पत्र से झर
एक वह पथ का प्रदर्शक जो दिशा करता उजागर
स्वाति के नक्षत्र की इक बूँद का जल बन गया था
भिन्न गुण वाला परिस्थिति साथ जैसी मिल गई थी
उड़ गया कार्पूर बन कर याकि मोती बन गया था
हो गया विष जब कि संगत शेषनागी हो गई थी
किंतु तेरी वीण के इक तार की झंकार छू कर
ज्ञान का भंडार होकर छा गया पूरे जगत पर
बूँद भर जल मेघगृह में जा हुआ है शत सहस्त्रित
और फिर बरखा बना है भूमि की तृष्णा बुझाने
ईश का वरदान बन कर जब सज़ा नत भाल पर तो
कालिदासों के मुखों से लग गया कविता बहाने
बूँद भर जल बह शिरा में ज़िंदगी को प्राण देता
और संभव कर रहा हम गीत गायें गुनगुनाकर
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