और इक बरस बीता
करते हुए प्रतीक्षा अब की बार
जतन कर बोये
जितने वे अंकुर फूटेंगे
अंधियारे जो मारे हुए कुंडली
बन मेहमान रुके है
संभवतः रूठेंगे
आश्वासन की कटी पतंगों
की डोरी में उलझे
अच्छे दिन आ जाएंगे
नऐ भोर के नए उजाले
नव सूरज की किरणें लेकर
तन मन चमकाएंगे
अँधियारा पर जीता
नयनो की अंगनाई सूनी रही
क्षितिज की देहरी पर ही
अटके सारे सपने
लगे योजनाओ के विस्तृत
मीलो तक बिखरे पैमाने
बालिश्तों से नपने
ई
ति
हासो के पृष्ठ झाड़ कर
जमी धूल की परते
फिर से आगे आये
और नए की अगवानी में
घिसे पिटे से
चंद
गीत
फिर से दुहराये
रही प्रतीक्षित सीता
आशाओ के इंद्रधनुष की
रही प्रतीक्षा, कोई आकार
प्रत्यंचा को ताने
आवाहन के मंत्रो का
उच्चार करे फिर
तीर कोई संधाने
सहज साध्य में हर असाध्य को
एक परस से निज
परिवर्तित कर दे
पर्वत
सी हर इक बाधा को
बिन प्रयास ही
धराशायी जो कर दे
रही अनकही गीता
1 comment:
ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप को विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "१० जनवरी - विश्व हिन्दी दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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