नव संवर में आज नए कुछ रंग

सोच रहा हूँ  नव संवर में आज नए कुछ रंग संवारूँ
एक  बार जो लगें कभी भी जीवन भर वे उतर  ना पाएं 
 
मांग रहा हूँ आज उषा से अरुण पीत रंगों की आभा 
कहा साँझ से मुझे सौंप से थोड़ा सा ला रंग सिंदूरी 
करी याचना नीले रंग की सिंधु  आसमानी की नभ से      
कहा निशा से मेरी झोली में भर दे अपनी कस्तूरी 
 
पाये इनका स्पर्श ज़िंदगी का कोई पल बच ना पाये 
एक बार लग जाए ये फिर रंग दूसरा चढ़ ना पाये 
 
हरित दूब से हरा रंग ले, लाल रंग गुड़हल से लेकर 
मैं चुनता हूँ रंग सुनहरा पकी धान की इक बाली से 
श्वेत कमल से लिया सावनी मेघॊं से ले रंग सलेटी
आंजुर में ेभर लिए रंग फिर हँसते होठों की लाली से 
 
चाहा रंग मेंहदिया सबके हाथों में आ रच बस जाएँ 
एक बार यों लगे कभी भी फिर दोबारा  उतर  ना पाएं .
 
चुनी अजन्ता भित्तिचित्र से अक्षय रंगों की आभायें
खिलते फूलों के लाया मैं चुनकर सारे वृन्दावन से
अभिलाषा ले सारे जग को इन के रंगों में रँग डालूँ
राग द्वेष ईर्ष्या घृणा सब मिट जायें वसुधा आँगन से
 
रंग प्रीत के नये प्रफ़ुल्लित हर फुलवारी आज सजायें
तन को चूमें मन को चूमें,जीवन खुशियों से रँग जायें

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!

Satish Saxena said...

वाह !!
यह खूबसूरती कहीं नहीं , मंगलकामनाएं आपको !

Unknown said...

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