जितने भी थे शब्द अधर के गलियारे से परे रह गये
लहरों के सँग बहे नहीं सब दीप किनारे खड़े रह गये
सुर ने तो सरगम को भेजा सांझ सवेर स्नेह निमंत्रण
किन्तु हठी रागिनियों के था हुआ नहीं मन का परिवर्तन
बिना टिकट वाले पत्रों से, सब सन्देश लौट कर आये
सुर को सम्भव हो न सका वह शब्द राग में बोकर गाये
ले न सका नव पल्लव सूखी शाखा पर फिर से अँगड़ाई
एक बार जो फ़िसल गिरे वे पत्र झरे के झरे रह गये
अभिलाषित रह गया तिमिर के घने घिरे व्यूहों में बन्दी
गिरा लड़खड़ा भाव वही जिसने चाहा होना स्वच्छन्दी
बन्धी हुई माला के मनके एक एक कर सारे बिखरे
और व्याकरण नित्य कलम से कहती रही और मत लिख रे
उठे हाथ थे लिये कामना अक्षयता का वर पाने को
लेकिन आराधित के आगे सिर्फ़ जुड़े के जुड़े रह गये
रही तूलिका बंदी कर में छुअन न कैनवास की पाई
रंगपट्ट को निगल चुकी है कोई धुंधली सी परछाई
चित्र नयन की दीवारों ने टांका नहीं एक भी अब तक
अंधियारे ने निगल रख लिया इन्द्रधनुष का पूरा सप्तक
शब्द , रंग, औ चित्र सभी ने रखी बढाये मन से दूरी
और फ्रेम में कोरे कागज़ ही बस केवल मढे रह गए
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
3 comments:
अद्भुत!!वाह!!
चित्र नयन की दीवारों ने टांका नहीं एक भी अब तक
अंधियारे ने निगल रख लिया इन्द्रधनुष का पूरा सप्तक
-वाह!!
बहुत सुन्दर भाव..
Post a Comment