कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है
ऐसा ही यह प्रश्न तुम्हारा तुमसे कितना प्यार मुझे है
संभव कहाँ शब्द में बांधू गहराई मैं मीत प्यार की
प्याले में कर सकूं कैद मैं गति गंगा की तीव्र धार की
आदि अंत से परे रहा जो अविरल है अविराम निरंतर
मुट्ठी में क्या सिमटेगी विस्तृतता तुमसे मेरे प्यार की
असफल सभी चेष्टा मेरी कितना भी चाहा हो वर्णित
लेकिन हुआ नहीं परिभाषित तुमसे कितना प्यार मुझे है
अर्थ प्यार का शब्द तुम्हें भी ज्ञात नहीं बतला सकते हैं
मन के बंधन जो गहरे हैं, होंठ कभी क्या गा सकते हैं
ढाई अक्षर कहाँ कबीरा, बतलासकी दीवानी मीरा
यह अंतस की बोल प्रकाशन पूरा कैसे पा सकते हैं
श्रमिक-स्वेद कण के नाते को रेख सिंदूरी से सुहाग का
जितना होता प्यार जान लो तुमसे उतना प्यार मुझे है
ग्रंथों ने अनगिनत कथाएं रचीं और हर बार बखानी
नल दमयंती, लैला मजनू, बाजीराव और मस्तानी
लेकिन अक्षम रहा बताये प्यार पैठता कितना गहरे
जितना भी डूबे उतना ही गहरा हो जाता है पानी
शायद एक तुम्हों हो जो यह सत्य मुझे बतला सकता है
तुम ही तो अनुभूत कर रहे तुमसे कितना प्यार मुझे है।
1 comment:
प्यार कही गहराई को जो नाप ले, वो प्यार ही क्या?
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