यह समय के वृहद ग्रन्थ का आज फिर 
इक नया पृष्ठ खुलने लगा बांच लें 
रिक्त जो रह गया शब्द के मध्य में 
कामनाएं सजा कर उसे आँक लें 
आओ हम तुम नया आज संकल्प लें 
सिसकियाँ सब बनें बांसुरी की धुनें 
कंटकों से सजे पंथ जितने रहे 
वे सभी फूल की पांखुरी से बनें 
शुष्क हो रह गए नैन की वीथी में 
स्वप्न की पौध फिर से करें अंकुरित 
पल जो डगमग हुए वर्ष में बीतते 
आओ उनको करें हम पुन: संतुलित 
अपनी कोशिश बनाए उसे आईना 
हाथ में जो भी टूटा हुआ कांच लें 
स्वप्न की बेल जो भी उगाये निशा
तय रहे उसको अवलम्ब पूरा मिले
साधना का दिया जो जले सांझ में
साथ दे आरती और पूजा चले
आस्था और विश्वास के अर्थ को
आज फिर से दिलों में सँजीवित करें
जो तिमिर से ढका रह गया अब तलक
इस नये वर्ष में आओ दीपित करें
जो भी निर्णय बने वह सुनिश्चित रहे
हम प्रकाशन से पहले उसे जाँच लें
वर्ष पर वर्ष अब तक रहे बीतते
दूरियाँ तुम से मैं की नहीं मिट सकीं
आओ हम बीज हम के करें अंकुरित
तो रहें द्वार उपलब्धियाँ आ सजी
जो अपेक्षित रहे वह हमारा रहे
एक का दूसरा बन के पूरक रहे
भोर की लालिमा ले सजा थाल को
द्वार अभिषेक आ नित्य सूरज करे
सुख बढ़े,शान्ति समृद्धि वैभव बढ़े
कीर्ति हो, कामनायें यही पाँच लें
