बन गईं लेखनी रश्मियाँ भोर की
आज लिखने लगी इक नई फिर कथा
हो गये हैं इकत्तीस पूरे बरस
अजनबी एक झोंका हवा का उड़ा
दो अपरिचित सहज आ गये पास में
दृष्टि से दृष्टियों ने उलझते हुये
एक दूजे को बाँधा था भुजपाश में
पंथ दो थे अलग, एक हो घुल गये
पग बढ़े एक ही रागिनी में बँधे
लक्ष्य के जितने अनुमान थे वे सभी
एक ही सूत्र है धड़कनों जोड़ता
भोर उगती रहीं सांझ ढलती रहीं
सांस के साथ सांसें लिपटती रहीं
दोपहर नित नये आभरण ओढ़ती
प्रीत की धूप पीती सँवरती रही
स्वप्न चारों नयन के हुये एक से
एक ही कामना परिणति की रही
साथ मिलकर के दो आंजुरि एक हो
प्राण दो थे मगर एक हो जुड़ गये
तय किये पंथ फ़ैले हुये दूर तक
पग चले साथ अवलम्ब बनते हुये
जेठिया धूप की चादरें थीं तनी
चाँदनी थी सितारों से छनते हुये
हर अपेक्षा की उड़ती हुये पांख को
बांध रक्खा समन्वय की इक डोर से
कर समर्पित रखे भावना के प्रहर
आज जीवन्त फिर से हुई कामना
साथ बस एक यह प्राप्त होवे सदा
आज लिखने लगी इक नई फिर कथा
हो गये हैं इकत्तीस पूरे बरस
जब कथानक गया इस कथा का लिखा
दो अपरिचित सहज आ गये पास में
दृष्टि से दृष्टियों ने उलझते हुये
एक दूजे को बाँधा था भुजपाश में
पंथ दो थे अलग, एक हो घुल गये
पग बढ़े एक ही रागिनी में बँधे
लक्ष्य के जितने अनुमान थे वे सभी
एक ही बिन्दु को केन्द्र करते सधे
हर सितारा गया मुस्कुरा कर बता
सांस के साथ सांसें लिपटती रहीं
दोपहर नित नये आभरण ओढ़ती
प्रीत की धूप पीती सँवरती रही
स्वप्न चारों नयन के हुये एक से
एक ही कामना परिणति की रही
साथ मिलकर के दो आंजुरि एक हो
यज्ञ में आहुति साथ देती रहीं
एक से जब विलग दूसरा कुछ न था
पग चले साथ अवलम्ब बनते हुये
जेठिया धूप की चादरें थीं तनी
चाँदनी थी सितारों से छनते हुये
हर अपेक्षा की उड़ती हुये पांख को
बांध रक्खा समन्वय की इक डोर से
कर समर्पित रखे भावना के प्रहर
पांव में उद्गमों के प्रथम छोर पे
साथ बस एक यह प्राप्त होवे सदा
1 comment:
इस दिन की ढेरों शुभकामनायें..
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